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________________ . पदार्थ-गोतमा !-हे गौतम ! उम्बरदत्ते-उम्बरदत्त / दारए-दारक-बालक। बावत्तरि-७२। वासाई-वर्षों की। परमाउं-परम आयु। पालइत्ता-पालकर-भोग कर। कालमासे-कालमास में-मृत्यु का समय आ जाने पर। कालं-काल। किच्चा-करके। इमीसे-इस। रयणप्पभाए पुढवीए-रत्नप्रभा नामक पहली नरक में। णेरइयत्ताए-नारकी रूप से। उववजिहिति-उत्पन्न होगा। तहेव-तथैव-अर्थात् पहले की भांति। संसारो-संसारभ्रमण करेगा। जाव-यावत्। पुढवीए०-पृथिवीकाया में लाखों बार उत्पन्न होगा अर्थात् इस का शेष संसारभ्रमण भी प्रथम अध्ययनगत मृगापुत्र की भान्ति जान लेना चाहिए, यावत् वह पृथिवीकाया में जन्म लेगा। ततो-वहां से निकल कर। हत्थिणाउरे-हस्तिनापुर। णगरे-नगर में। कुक्कुडत्ताए-कुर्कुट-कुक्कुड के रूप में। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगा। जायमेत्ते चेव-जातमात्र अर्थात् उत्पन्न हुआ ही। गोहिल्लवहिते-गौष्ठिक-दुराचारीमंडल के द्वारा वध को प्राप्त होता हुआ। तत्थेव-वहीं। हत्थिणाउरे णयरे-हस्तिनापुर नगर में। सेट्ठि-श्रेष्ठिकुल में उत्पन्न होगा। बोहिं०-बोधि सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा, तथा वहां पर मृत्यु को प्राप्त हो कर। सोहम्मे-सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा, वहां से च्यव कर। महाविदेहे - महाविदेह क्षेत्र में जन्मेगा, वहां पर संयम का आराधन कर के। सिज्झिहिति ५-सिद्ध पद को प्राप्त करेगा, केवलज्ञान द्वारा समस्त पदार्थों को जानेगा, समस्त कर्मों से रहित हो जाएगा, सकलकर्मजन्य सन्ताप से विमुक्त होगा, सब दुःखों का अन्त कर डालेगा। णिक्खेवोनिक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्ववत् कर लेनी चाहिए। सत्तमं-सप्तम। अज्झयणं-अध्ययन। समत्तंसम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ-भगवान् ने कहा कि हे गौतम ! उम्बरदत्त बालक 72 वर्ष की परम आयु पाल कर कालमास में काल कर के इसी रत्नप्रभा नामक पृथिवी-नरक में नारकीरूप से उत्पन्न होगा। वह पूर्ववत् संसारभ्रमण करता हुआ यावत् पृथिवीकाया में लाखों बार उत्पन्न होगा। वहां से निकल कर हस्तिनापुर नगर में कुक्कुड के रूप में उत्पन्न होगा। वहां जातमात्र ही गोष्ठिकों के द्वारा वध को प्राप्त होता हुआ वहीं हस्तिनापुर में एक श्रेष्ठिकुल में उत्पन्न होगा, वहां सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा, वहां से मर कर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा, वहां से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा; वहां अनगार धर्म को प्राप्त कर यथाविधि संयम की आराधना से कर्मों का क्षय करके सिद्धपद-मोक्ष को प्राप्त करेगा। केवलज्ञान के द्वारा समस्त पदार्थों को जानेगा, समस्त कर्मों से रहित हो जाएगा, सकलकर्मजन्य सन्ताप से विमुक्त होगा, सब दुःखों का अन्त कर डालेगा। निक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्व की भान्ति कर लेनी चाहिए। ॥सप्तम अध्ययन समाप्त। टीका-परम विनीत गौतम स्वामी के अभ्यर्थनापूर्ण प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने फरमाया कि हे गौतम ! उम्बरदत्त बालक 72 वर्षपर्यन्त इस प्रकार से दुःखानुभव करेगा, अर्थात् 72 वर्ष की कुल आयु भोगेगा और आर्तध्यान से कर्मबन्ध करता हुआ यहां से कालधर्म प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय _[613
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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