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________________ छाया-ततः सा गंगादत्ता भार्या सागरदत्तसार्थवाहेनैतमर्थमभ्यनुज्ञाता सती सुबहु पुष्प मित्र महिलाभिः सार्धं स्वस्माद् गृहात् प्रतिनिष्क्रामति प्रतिनिष्क्रम्य पाटलिपंडात् नगराद् मध्यमध्येन निर्गच्छति निर्गत्य पुष्करिण्यास्तीरं तत्रैवोपागच्छति उपागत्य पुष्करिण्यास्तीरे सुबहु पुष्पवस्त्रगंधमाल्यालंकारं स्थापयति स्थापयित्वा पुष्करिणीमवगाहते अवगाह्य जलमज्जनं करोति, जलक्रीडां करोति कृत्वा स्नाता . कृतकौतुकमंगला, आर्द्रपटशाटिका पुष्करिण्याः प्रत्यवतरति प्रत्यवतीर्य तं पुष्प गृह्णाति गृहीत्वा यत्रैवोम्बरदत्तस्य यक्षस्य यक्षायतनं तत्रैवोपागच्छति उपागत्य उम्बरदत्तस्य यक्षस्यालोके प्रणामं करोति लोमहस्तं परामृशति परामृश्य उम्बरदत्तं यक्षं लोमहस्तेन प्रमार्टि प्रमाW दकधारयाभ्युक्षति अभ्युक्ष्य पक्ष्मल० गात्रयष्टिमवरूक्षयति (शुष्कं करोति प्रोञ्छतीत्यर्थः) अवरूक्ष्य श्वेतानि वस्त्राणि परिधापयति परिधाप्य महार्ह पुष्पारोहणं, वस्त्रारोहणं, माल्यारोहणं, गन्धारोहणं, चूर्णारोहणं करोति कृत्वा धूपं दहति दग्ध्वा जानुपादपतिता एवमवादीत्-यद्यहं देवानुप्रियाः! दारकं वा दारिकां वा प्रजन्ये ततो यावदुपयाचति उपयाच्य यस्या एव दिशः प्रादुर्भूता तस्या एव दिशः प्रतिगता। पदार्थ-ततेणं-तदनन्तर / सा-वह / गंगादत्ता भारिया-गंगादत्ता भार्या / सागरदत्तसत्थवाहेणंसागरदत्त सार्थवाह से। एतमटुं-इस प्रयोजन के लिए। अब्भणुण्णाता समाणी-अभ्यनुज्ञात हुई अर्थात् आज्ञा प्राप्त करके। सुबहुं-बहुत से। पुष्फ-पुष्प, वस्त्र, गन्ध-सुगन्धित द्रव्य, माला और अलंकार लेकर। मित्त-मित्रों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों एवं परिजनों की। महिलाहिं-महिलाओं के।सद्धिं-साथ। सातो-अपने / गिहातो-घर से। पडिणिक्खमति पडिणिक्खमित्ता-निकलती है, निकल कर। पाडलिसंडे-पाटलिपंड। णगरं-नगर के। मझमझेणं-मध्यभाग से। निग्गच्छइ निग्गच्छित्तानिकलती है, निकल कर। जेणेव-जहां। पुक्खरिणीए-पुष्करिणी-बावड़ी का। तीरे-तट था। तेणेववहां पर। उवागच्छति उवागच्छित्ता-आ जाती है, आकर। पुक्खरिणीए तीरे-पुष्करिणी के किनारे-तट पर। सुबहुं-बहुत से। पुष्फवत्थगंधमल्लालंकारं-पुष्पों, वस्त्रों, गन्धों, मालाओं, और अलंकारों को। ठवेति ठवित्ता-रख देती है, रख कर। पुक्खरिणिं-बावड़ी में। ओगाहेति ओगाहित्ता-प्रवेश करती है, प्रवेश करके।जलमजणं-जलमज्जन-जल में गोते लगाना। करेति-करती है, तथा। जलकिड्डं-जलक्रीड़ा। करेति-करती है। हाया-स्नान किए हुए। कयकोउयमंगला-कौतुक-मस्तक पर तिलक तथा मांगलिक कृत्य करके। उल्लपडसाडिया-आर्द्र पट तथा शाटिका पहने हुए। पुक्खरिणीए-पुष्करिणी से। पच्चुत्तरति पच्चुत्तरित्ता-बाहर आती है, बाहर आकर / तं-उस। पुष्फ-पुष्प वस्त्रादि को। गेण्हति गेण्हित्ता-ग्रहण करती है, ग्रहण कर।जेणेव-जहां उंबरदत्तस्स-उम्बरदत्त / जक्खस्स-यक्ष का। जक्खायतणे-यक्षायतनस्थान था। तेणेव-वहां पर। उवागच्छइ उवागच्छित्ता-आ जाती है, आ कर। उम्बरदत्तस्स-उम्बरदत्त / 594 ] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [प्रथमः श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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