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________________ कुंकुम (केसर) से मानों जीवलोक-संसार के खचित-व्याप्त होने पर, लोचनविषय के अनुकाश-विकास (प्रसार) से लोक विकासमान (वर्धमान) अर्थात् अंधकारावस्था में संसार संकुचित प्रतीत होता है और प्रकाशावस्था में वही वर्धमान-बढ़ता हुआ सा प्रतीत होता है, एवं विशद-स्पष्ट दिखलाए जाने पर कमलाकर-ह्रद (झील) के कमलों के बोधक-विकास करने वाले, हज़ार किरणों वाले, दिन के करने वाले, तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के उत्थित होने पर अर्थात् उदय के अनन्तर की अवस्था को प्राप्त होने पर। .. -सद्धिं जाव न पत्ता-यहां के जाव-यावत् पद से पीछे पढ़े गए-बहूइं वासाइं उरालाई माणुस्सगाई-से लेकर-अकयपुण्णा एत्तो एक्कतरमवि न-यहां तक के पदों का परिचायक है। तथा-अब्भणुण्णाता जाव उवाइणित्तए-यहां का जाव-यावत् पद मूल में पढ़े गए-सुबहुं पुष्फवत्थगंधमल्लालंकारं गहाय-से लेकर-अणुवड्ढेस्सामि त्ति कटु ओवाइयं- यहां तक के पदों का परिचायक है। प्रस्तुत. सूत्र में श्रेष्ठिभार्या गंगादत्ता के मनौती-मन्नतसम्बन्धी विचारों का उल्लेख किया गया है। अब अग्रिम सूत्र में उन की सफलता के विषय में वर्णन करते हैं मूल-तते णं सा गंगादत्ता भारिया सागरदत्तसत्थवाहेणं एतमटुं अब्भणुण्णाता समाणी सुबहुं पुष्फल मित्त महिलाहिं सद्धिं सातो गिहातो पडिणिक्खमति पडिणिक्खमित्ता पाडलिसंडं णगरं मझमझेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव पुक्खरिणीए तीरे तेणेव उवागच्छति उवागच्छिता पुक्खरिणीए तीरे सुबहुं पुष्फवत्थगन्धमल्लालंकारं ठवेति ठवित्ता पुक्खरिणिं ओगाहेति ओगाहित्ता जलमजणं करेति, जलकिडं करेति करित्ता हाया कयकोउयमंगला उल्लपडसाडिया पुक्खरिणीए पच्चुत्तरति पच्चुत्तरित्ता तं पुष्फ गेण्हति गेण्हित्ता 'जेणेव उम्बरदत्तस्स जक्खस्स जक्खायतणे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता उंबरदत्तस्स जक्खस्स आलोए पणामं करेति करित्ता लोमहत्थं परामुसति परामुसित्ता उम्बरदत्तं जक्खं लोमहत्थएण पमजति पमज्जित्ता दगधाराए अब्भुक्खेति अब्भुक्खित्ता पम्हल० गायलढेि ओलूहेति ओलूहित्ता सेयाइं वत्थाई परिहेति परिहित्ता महरिहं पुष्फारुहणं, वत्थारुहणं, गंधारुहणं, चुण्णारुहणं करेति करित्ता धूवं डहति डहित्ता जाणुपायपडिया एवं वयासी-जति णं अहं देवाणुप्पिया ! दारगं वा दारिगं वा पयामि तो णं जाव उवाइणति उवाइणित्ता जामेव दिसं पाउब्भूता तामेव दिसं पडिगता। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [593
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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