________________ अप्पेगतियाणं-कितनों को तो। मच्छमंसाई-मत्स्यों के मांसों का अर्थात् उनके भक्षण का। उवदिसतिउपदेश देता है। अप्पेगतियाणं-कितनों को। कच्छभमंसाई-कच्छपमांसों का-कछुओं के मांसों को भक्षण करने का। अप्पेगतियाणं-कितनों को। गाहमंसाइं-ग्राहों-जलचर विशेषों के मांसों का। अप्पेगतियाणं-कितनों को। मगरमंसाई-मगरों-जलचरविशेषों के मांसों का। अप्पेगतियाणं-कितनों को। सुंसुमारमंसाइं-सुंसमारों-जलचरविशेषों के मांसों का। अप्पेगतियाणं-कितनों को। अयमंसाइंअजों-बकरों के मांसों का। एवं-इस प्रकार। एल-भेड़ों। रोज्झ-गवयों अर्थात् नीलगायों। सूयर-शूकरोंसूअरों। मिग-मृगों-हरिणों। ससय-शशकों अर्थात् खरगोशों। गो-गौओं। महिसमंसाइं-और महिषोंभैंसों के मांसों का (उपदेश देता है)। अप्पेगतियाणं-कितनों को। तित्तिरमंसाइं-तित्तरों के मांसों का। . वट्टक-बटेरों। लावक-लावकों-पक्षिविशेषों। कवोत-कबूतरों। कुक्कुड-कुक्कड़ों-मुर्गों। मऊरमंसाइं और मयरों-मोरों के मांसों का उपदेश देता है। च-तथा। अन्नेसिं-अन्य। बहणं-बहत से। जलयरजलचरों-जल में चलने वाले जीवों। थलयर-स्थलचरों-स्थल में चलने वाले जीवों। खहयरमादीणं और खेचरों-आकाश में चलने वाले जीवों के। मंसाइं-मांसों का। उवदिसति-उपदेश देता है। अप्पणा वि य णं-तथा स्वयं भी। से-वह। धन्नंतरी-धन्वन्तरि। वेज्जे-वैद्य। तेहिं-उन। बहूहि-अनेकविध। मच्छमंसेहि य-मत्स्यों के मांसों। जाव-यावत्। मऊरमंसेहि य-मयूरों के मांसों तथा। अन्नेहि-अन्य। बहूहिं य-बहुत से। जलयर-जलचर। थलयर-स्थलचर। खहयरमंसेहि य-खेचर जीवों के मांसों से तथा। मच्छरसेहि य-मत्स्यरसों। जाव-यावत्। मऊररसेहि य-मयूररसों से, जो कि। सोल्लेहि य-पकाए हुए। तलिएहि य-तले हुए। भज्जिएहि य-और भूने हुए हैं, उन के साथ। सुरं च ५-सुरा आदि छः प्रकार की मदिराओं का। आसाएमाणे ४-आस्वादन, विस्वादनादि करता हुआ। विहरति-विचरता हैजीवन व्यतीत करता है। तते णं-तत्पश्चात्। से-वह। धनंतरी-धन्वन्तरि। वेज्जे-वैद्य। एयकम्मे ४एतत्कर्मा-ऐसा ही पाप पूर्ण जिस का काम हो, एतत्प्रधान-यही कर्म जिस का प्रधान हो अर्थात् यही जिस के जीवन की साधना हो, एतद्विद्य-यही जिस की विद्या-विज्ञान हो और एतत्समाचार-जिस के विश्वासानुसार यही सर्वोत्तम आचरण हो, ऐसा वह। सुबहुं-अत्यधिक। पावं कम्म-पाप कर्मों का। समजिणित्ताउपार्जन करके। बत्तीसं वाससयाई-बत्तीस सौ वर्षों की। परमाउं-परमायु को। पालइत्ता-पाल कर। कालमासे-कालमास में। कालं किच्चा-काल करके। छट्ठीए-छट्ठी। पुढवीए-पृथिवी नरक में। उक्कोसेणं-उत्कृष्ट। बावीससागरोवमट्ठिइएसु-२२ सागरोपम की स्थिति वाले। णेरइएसु-नारकियों में। णेरइयत्ताए-नारकीरूप से। उववन्ने-उत्पन्न हुआ। मूलार्थ-इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में विजयपुर नाम का एक ऋद्ध, स्तिमित, एवं समृद्ध नगर था। उस में कनकरथ नाम का राजा राज्य किया करता था। उस कनकरथ नरेश का आयुर्वेद के आठों अंगों का ज्ञाता धन्वन्तरि नाम का एक वैद्य था। आयुर्वेद-सम्बन्धी आठों अंगों का नामनिर्देश निम्नोक्त है (1) कौमारभृत्य (2) शालाक्य (3) शाल्यहत्य (4) कायचिकित्सा 572 ] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध