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________________ .. "-एएणं विहाणेणं-" यहां प्रयुक्त एतद् शब्द उस विधान-प्रकार का परिचायक है, जिसे भिक्षा को गए भगवान् गौतम स्वामी ने मथुरा नगरी के राजमार्ग पर देखा था। तथा एतद्-शब्द-सम्बन्धी विस्तृत विवेचन द्वितीय अध्याय में किया गया है। पाठक वहां देख सकते हैं। अन्तर मात्र इतना है कि वहां उज्झितक कुमार का वर्णन है, जब कि प्रस्तुत में नन्दिषेण का। "-पुत्ते जाव विहरति-" यहां पठित जाव-यावत् पद प्रथम अध्ययाय में पढ़े गए "-पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं, दुप्पडिक्कन्ताणं असुभाणं-" इत्यादि पदों का परिचायक गत सूत्रों में गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर का वर्णन किया गया है। अब सूत्रकार गौतम स्वामी की अग्रिम जिज्ञासा का वर्णन करते हैं मूल-णंदिसेणे कुमारे इओ चुते कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति? कहिं उववजिहिति ? ... छाया-नन्दिषेणः कुमारः इतश्च्युतः कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्रोपपत्स्यते ? -पदार्थ-णंदिसेणे-नन्दिषेण, कुमारे-कुमार। इओ-यहां से।चुते-च्यव कर-मर कर।कालमासे'कालमास में। कालं किच्चा-काल करके। कहि-कहां। गच्छिहिति?-जाएगा?, और।कहिं-कहां पर। उववजिहिति ?-उत्पन्न होगा? मूलार्थ-गौतम स्वामी ने भगवान् से फिर पूछा कि भगवन् ! नन्दिषेण कुमार यहां से मृत्युसमय में काल करके कहां जाएगा? और कहां पर उत्पन्न होगा? टीका-भावी जन्मों की पृच्छा के सम्बन्ध में प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय अध्याय में काफी लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र नाम का है, कहीं मृगापुत्र का नाम है, कहीं उज्झितक कुमार का तथा कहीं शकट कुमार का / शेष वर्णन समान ही है। अतः पाठक वहीं पर देख सकते हैं। __ गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फ़रमाया वह निम्नोक्त है मूल-से गोतमा ! णंदिसेणे कुमारे सटुिं वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए० संसारो तहेव जाव पुढवीए / ततो हत्थिणाउरेणगरे मच्छत्ताए उववजिहिति।सेणं तत्थ मच्छिएहिं वहिते समाणे तत्थेव सिट्ठिकुले बोहिं॰ सोहम्मे० महाविदेहे० सिज्झिहिति, प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [547
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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