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________________ पदार्थों जैसी गन्ध होती है। ५७-तिक्तरसनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव के शरीर का रस सोंठ या काली मिर्च जैसा चरचरा होता है। ५८-कटुरसनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव के शरीर का रस नीम या चरायते जैसा कटु होता है। . ५९-कषायरसनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव के शरीर का रस आंवले या बहेड़े जैसा कसैला होता है। ६०-आम्लरसनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव के शरीर का रस नींबू या इमली जैसा खट्टा होता है। ६१-मधुररसनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव के शरीर का रस ईख जैसा मीठा होता है। ६२-गुरुस्पर्शनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर लोहे जैसा भारी होता है। ६३-लघुस्पर्शनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर आक की रूई जैसा हलका होता है। ६४-मृदुस्पर्शनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर मक्खन जैसा कोमल होता है। ६५-कर्कशस्पर्शनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर गाय की जीभ जैसा खुरदरा होता है। ६६-शीतस्पर्शनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर कमलदण्ड या बर्फ जैसा ठण्डा होता है। ६७-उष्णस्पर्शनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर अग्नि के समान उष्ण होता है। ६८-स्निग्धस्पर्शनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर घृत के समान चिकना होता है। ६९-रूक्षस्पर्शनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर राख के समान रूखा होता है। ७०-देवानुपूर्वीनामकर्म-इस कर्म के उदय से समणि से गमन करने वाला जीव - 1. जीव की स्वाभाविक गति श्रेणि के अनुसार होती है। आकाशप्रदेशों की पंक्ति को श्रेणि कहते हैं। एक शरीर को छोड़ दूसरा शरीर धारण करने के लिए जीव जब समश्रेणि से अपने उत्पत्ति-स्थान के प्रति जाने लगता 46 ] श्री विपाक सूत्रम् .. . [प्राक्कथन
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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