SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 544
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमि को खोदने में महान् दुःख उत्पन्न होता है। इसी कारण दुर्योधन चारकपाल अपराधियों के हाथों में सुइयां प्रविष्ट करा कर उन से भूमि खुदवाया करता था। "-दब्भेहि य कुसेहि य अल्लचम्मेहि य वेढावेति, आयवंसि दलयति 2 सुक्खे समाणे चडचडस्स उप्पाडेति-" अर्थात् शस्त्रादि से अपराधियों के शरीर को तच्छवा कर, दर्भ (मूलसहित घास, कुशा (मूल रहित घास) तथा आई चमड़े से उन्हें वेष्टित करवाता है, तदनन्तर उन्हें धूप में खड़ा कर देता है, जब वह दर्भ, कुशा तथा आर्द्र चमड़ा सूख जाता था तब दुर्योधन चारकपाल उन को उनके शरीर से उखाड़ता था। वह इतने ज़ोर से उखाड़ता था कि वहां चड़चड़ शब्द होता था और दर्भादि के साथ उनकी चमड़ी भी उखड़ जाती थी। . इस प्रकार के अपराधियों को दिए गए नृशंस दण्ड के वर्णन से यह भलीभान्ति पता चल जाता है कि दुर्योधन चारकपाल का मानस बड़ा निर्दयी एवं क्रूरतापूर्ण था। वह अपराधियों को सताने में, पीड़ित करने में कितना अधिक रस लेता था यह ऊपर के वर्णन से स्पष्ट ही है। उन्हीं पापमयी एवं क्रूरतामयी दूषित प्रवृत्तियों के कारण उसे छठी नरक में जाकर 22 सागरोपम तक के बड़े लम्बे काल के लिए अपनी करणी का फल पाना पड़ा। इस पर से शिक्षा ग्रहण करते हुए सुखाभिलाषी पाठकों को सदा क्रूरतापूर्ण एवं निर्दयतापूर्ण प्रवृत्तियों से विरत रहने का उद्योग करना चाहिए, और साथ में कर्त्तव्य पालन की ओर सतत जागरूक रहना चाहिए। ... -पज्जेति जाव एलमुत्तं-यहां पठित जाव-यावत् पद से-उट्टमुत्तं, गोमुत्तं, महिसमुत्तं अयमुत्तं-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। इन पदों का अर्थ स्पष्ट ही है। -करेति जाव सत्थोवाडिए-यहां के जाव-यावत् पद से-पायछिन्नए, कन्नछिन्नए नक्कछिन्नए, उछिन्नए, जिब्भछिन्नए, सीसछिन्नए-इत्यादि पदों का ग्रहण करना चाहिए। जिस के पांव काटे गए हैं उसे पादछिन्नक, जिसके कान काटे गए हों उसे कर्णछिन्नक, जिस का नाक काटा गया हो उसे नासिकाछिन्नक, जिसके होंठ काटे गए हों उसे ओष्ठछिन्नक, जिस की जिह्वा काटी गई है उसे जिह्वाछिन्नक और जिस का शिर काटा गया है उसे शीर्षछिन्नक कहते हैं। -वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि-यहां के जाव-यावत् पद से-वेत्तलयाहि य चिञ्चालयाहि य छिवाहि य कसाहि य-इन पदों का तथा-तंतीहि य जाव सुत्तरजूहि ययहां के जाव-यावत् पद से -वरत्ताहि य वागरजूहि य वालरज्जूहि य-इन पदों का, तथा -असिपत्तेहि य जाव कलंबचीरपत्तेहि य-यहां के जाव-यावत् पद से-करपत्तेहि य खुरपत्तेहि य - इन पदों का, तथा-सत्थएहिं जाव नहछेदणएहि-यहां के जाव-यावत् पद प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [535
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy