________________ वंशशलाकांश्च दापयति, अलानि भंजयति (प्रवेशयति) अप्येकेषां सूचीश्च दम्भनानि . च हस्तांगुलिषु च पादांगुलिषु च कौटिल्यैराखोटयति 2 भूमिं कंडूयति। अप्येकेषां शस्त्रकैश्च यावत् नखच्छेदनैश्चांगं प्रतक्षयति / दर्भश्च कुशैश्चार्द्रचर्मभिश्च वेष्टयति, आतपे दापयति, शुष्के सति चडचडमुत्पाटयति। ततः स दुर्योधनः चारकपालः एतत्कर्मा 4 सुबहु पापं कर्म समर्प्य एकत्रिंशतं वर्षशतानि परमायुः पालयित्वा कालमासे कालं कृत्वा षष्ठ्यां पृथिव्यामुत्कर्षेण द्वाविंशतिसागरोपमस्थितिकेषु नैरयिकेषूपपन्नः। . पदार्थ-ततेणं-तदनन्तर।से-वह। दुज्जोहणे-दुर्योधन / चारगपाले-चारकपाल अर्थात् कारागृह का प्रधान अधिकारी-जेलर। सीहरहस्स-सिंहरथ। रणो-राजा के। बहवे-अनेक। चोरे य-चोरों को। पारदारिए य-परस्त्री-लम्पटों को। गंठिभेदे य-गांठकतरों को। रायावगारी य-राजा के अपकारियोंशत्रुओं को, तथा। अणधारए य-ऋणधारकों-कर्जा नहीं देने वालों को अर्थात् जो ऋण लेकर उसे वापिस . नहीं करते हैं, उन को। बालघाती य-बालघातियों-बालकों की हत्या करने वालों को। वीसंभघाती यविश्वास-घातकों को। जूतकारे य-जुआरियों को अर्थात् जुआ खेलने वालों को। खण्डपट्टे य-और धूर्तों को। पुरिसेहि-पुरुषों के द्वारा। गेण्हावेति गेण्हावेत्ता-पकड़वाता है, पकड़वा कर। उत्ताणएऊर्ध्वमुख-सीधा, पंजाबी भाषा में जिसे चित्त कहते हैं। पाडेति-गिराता है, तदनन्तर। लोहदंडेणंलोहदण्ड से। मुहं-मुख को। विहाडेति २-खुलवाता है, खुलवा कर। अप्पेगतिए-कई एक को। तउयंतत्तं तंबं-तप्त-पिघला हुआ ताम्र-ताम्बा। पजेति-पिलाता है। अप्पेगतिए-कई एक को। त्रपु-रांगा। . पज्जेति-पिलाता है।अप्पेगतिए-कितने एक को। सीसगं-सीसक-सिक्का पन्जेति-पिलाता है।अप्पेगतिएकितने एक को। कलकलं-चूर्णमिश्रित जल को अथवा कलकल शब्द करते हुए गरम-गरम पानी को। पज्जेति-पिलाता है। अप्पेगतिए-कितने एक को। खारतेल्लं-क्षारयुक्त तेल को। पजेति-पिलाता है। अप्पेगतियाणं-कितनों का। तेणं चेव-उसी तैल से। अभिसेगं कारेति-अभिषेक-स्नान कराता है। अप्पेगतिए-कितनों को। उत्ताणे-ऊर्ध्वमुख-सीधा / पाडेति २-गिराता है, गिरा कर / आसमुत्तं-अश्वमूत्र / पजेति-पिलाता है। अप्पेगतिए-कितनों को। हत्थिमुत्तं-हस्तीमूत्र। पज्जेति-पिलाता है। जाव-यावत्। एलमुत्तं-एडमूत्र-भेड़ों का मूत्र। पन्जेति-पिलाता है। अप्पेगतिए-कितनों को। हेट्ठामुहे-अधोमुख ओंधा। पाडेति २-गिराता है, गिरा कर। घलघलस्सर-घल घल शब्द पूर्वक। वम्मावेति-वमन कराता है। अप्पेगतियाणं-कितनों को। तेणं-चेव-उसी वान्त पदार्थ से। ओवीलं-पीड़ा। दलयति-देता है। अप्पेगतिए-कितनों को। हत्थंदुयाहिं-हस्तान्दुकों-हाथ में बांधने वाले काष्ठनिर्मित बन्धनविशेषों से। बंधावेइ-बंधवाता है / अप्पेगतिए-कितनों को। पायंदुयाहिं-पादान्दुकों-पांव में बांधने योग्य काष्ठनिर्मित 1. अलानि भञ्जयति वृश्चिककण्टकान् शरीरे प्रवेशयतीत्यर्थः। (वृत्तिकारः) 2. खण्डपट्ट शब्द का विस्तार-पूर्वक अर्थ तृतीय अध्याय में लिखा जा चुका है। 3. इस पद के स्थान में कहीं-छडछडस्स-ऐसा, तथा-बलस्स-ऐसा पाठ भी मिलता है। "-छडछडस्स-" का अर्थ है -छड 2 शब्द पूर्वक, तथा "-बलस्स-" का -बलपूर्वक-ऐसा अर्थ होता है। 528 ] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध