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________________ यदि भगवन् ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के पञ्चम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त)अर्थ फरमाया है, तो भगवन् ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःख-विपाक के छठे अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है? जम्बू स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में उनके पूज्य गुरुदेव श्री सुधर्मा स्वामी ने जो कुछ कहना आरम्भ किया उसी को सूत्रकार ने -एवं खलु जम्बू !- इत्यादि पदों द्वारा अभिव्यक्त किया है। जिन का अर्थ मूलार्थ में दिया जा चुका है और जो अधिक विवेचन की अपेक्षा नहीं रखता। - "-अलंकारिक-" इस पद का अर्थ सजाने वाला भी होता है, परन्तु वृत्तिकार ने "-अलंकारियकम्मं-"का क्षुरकर्म-क्षौरकर्म (हजामत आदि बनाना) यह अर्थ किया है। इस पर से ज्ञात होता है कि चिंत्र नाम का एक नापित-नाई था जो कि श्रीदाम नरेश के यहां रहता था और श्रीदाम नरेश का बड़ा कृपापात्र था। महाराज श्रीदाम क्षौरकर्म उसी से करवाया करते थे, इसीलिए चित्र को राजभवन में हर एक स्थान पर जाने आने की स्वतन्त्रता थी। वह बिना रोकटोक के जहां चाहे वहां जा आ सकता था। शय्यास्थान, भोजनस्थान, मंत्रस्थान और आयस्थान आदि स्थानों तथा प्रासादादि की हर एक भूमिका-मंजिल आदि में अपनी इच्छा के अनुसार आता जाता था अर्थात् उसे किसी प्रकार की रोकटोक नहीं थी। सर्वस्थान, सर्वभूमिका और अन्तःपुर इन पदों का अर्थ पीछे पंचम अध्याय में लिखा जा चुका है। तथा "-दिण्णवियारे-" इस पद की व्याख्या वृत्तिकार के शब्दों में "राज्ञानुज्ञातसंचरणः, अनुज्ञातविचारणो वा-" इस प्रकार है अर्थात् दत्तविचार के दो अर्थ होते हैं, जैसे कि १-जिस को राजा की ओर से आने तथा जाने की आज्ञा मिली हुई हो। २जिस को हर किसी से विचारविनिमय अथवा वार्तालाप करने की पूर्ण आज्ञा प्राप्त हो रही हो। .. "-अहीण जाव जुवराया-" यहां पठित जाव-यावत् पद से "-पडिपुण्णपंचिंदियसरीरे- से लेकर "-कन्ते पियदंसणे सुरूवे-" यहां तक के पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन का अर्थ द्वितीय अध्याय में दिया गया है। ___".-सामभेददंड०-" यहां के बिन्दु से "-उवप्पयाणनीतिसुप्पउत्तणयविहिन्नु" इत्यादि पदों का परिचायक है। इन का वर्णन चतुर्थ अध्याय में किया जा चुका है। तथा मंत्रिपुत्र के सम्बन्ध में दिए गए "-अहीण-" के बिन्दु से विवक्षित पाठ का वर्णन भी द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है। प्रस्तुत सूत्रपाठ में मथुरा नगरी तथा भंडीर उद्यान आदि का नाम निर्देश किया गया है। इन से सम्बन्ध रखने वाला विशेष वर्णन अग्रिम सूत्र में किया जाता है प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [513
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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