________________ १६-वैक्रियअंगोपांगनामकर्म-इस कर्म के उदय से वैक्रियशरीररूप में परिणत पुद्गलों से अंगोपांगरूप अवयव बनते हैं। १७-आहारकअंगोपांगनामकर्म-इस कर्म के उदय से आहारक शरीर रूप में परिणत पुद्गलों से अंगोपांगरूप अवयव बनते हैं। १८-औदारिकसंघातननामकर्म-इस कर्म के उदय से औदारिक शरीर के रूप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सान्निध्य होता है अर्थात् एक दूसरे के पास व्यवस्था से स्थापित होते हैं। १९-वैक्रियसंघातननामकर्म-इस कर्म के उदय से वैक्रिय शरीर के रूप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सामीप्य होता है। २०-आहारकसंघातननामकर्म-इस कर्म के उदय से आहारक शरीर के रूप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सान्निध्य होता है। २१-तैजससंघातननामकर्म-इस कर्म के उदय से तैजस शरीर के रूप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सामीप्य होता है। २२-कार्मणसंघातननामकर्म-इस कर्म के उदय से कार्मण शरीर के रूप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सान्निध्य होता है। २३-औदारिकऔदारिकंबन्धननामकर्म-इस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत औदारिक पुद्गलों के साथ गृह्यमाण औदारिक पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध होता है। ... २४-औदारिकतैजसबन्धननामकर्म-इस कर्म के उदय से औदारिक दल का तैजस दल के साथ सम्बन्ध होता है। २५-औदारिककार्मणबन्धननामकर्म-इस कर्म के उदय से औदारिक दल का कार्मण दल के साथ सम्बन्ध होता है। - २६-वैक्रियवैक्रियबन्धननामकर्म-इस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत वैक्रियपुद्गलों के साथ गृह्यमाण वैक्रिय पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध होता है। इसी भांति-२७ वैक्रियतैजसबन्धननामकर्म, २८-वैक्रियकार्मणबन्धननामकर्म, २९-आहारकआहारकबन्धननामकर्म, ३०-आहारकतैजसबन्धननामकर्म, 31 आहारककार्मणबन्धननामकर्म,३२-औदारिकतैजसकार्मणबन्धननामकर्म१,३३-वैक्रियतैजसकार्मणबन्धननामकर्म, ३४-आहारकतैजसकार्मणबन्धननामकर्म, ३५-तैजसतैजसबन्धननामकर्म, ३६-तैजसकार्मणबन्धननामकर्म, ३७-कार्मणकार्म 1. इस कर्म के उदय से औदारिकदल का तैजस और कार्मण दल के साथ सम्बन्ध होता है। प्राकाथन] श्री विपाक सूत्रम् [43