________________ विशेष उत्कण्ठा हो ही जाती है। इसी कारण से गौतम स्वामी ने बृहस्पतिदत्त के आगामी भवों के विषय में भगवान् से पूछने का प्रस्ताव किया है। इस के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जो कुछ फरमाया अब सूत्रकार उस का वर्णन करते हैं मूल-गोतमा ! बहस्सतिदत्ते णं पुरोहिते चउसटुिंवासाइं परमाउंपालइत्ता अजेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे कते समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए- संसारो तहेव जाव पुढवीए। ततो हत्थिणाउरेणगरे मियत्ताए पच्चायाइस्सति।सेणं तत्थ वाउरिएहिं वहिते समाणे तत्थेव हत्थिणाउरे णगरे सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए० बोहिं॰ सोहम्मे महाविदेहे सिज्झिहिति ५।णिक्खेवो। . ॥पञ्चमं अज्झयणं समत्तं॥ छाया-गौतम ! बृहस्पतिदत्तः पुरोहितः चतुःषष्टिं वर्षाणि परमायुः पालयित्वा अद्यैव त्रिभागावशेषे दिवसे शूलभिन्नः कृतः सन् कालमासे कालं कृत्वा अस्यां रत्नप्रभायां संसारस्तथैव यावत् पृथिव्याम्, ततो हस्तिनापुरे नगरे मृगतया प्रत्यायास्यति / स तत्र वागुंरिकै: वधितः सन् तत्रैव हस्तिनापुरे नगरे श्रेष्ठिकुले पुत्रतया बोधि सौधर्मे महाविदेहे० सेत्स्यति 5 निक्षेपः। ॥पञ्चमध्ययनं समाप्तम्॥ . पदार्थ-गोतमा !-हे गौतम ! बहस्सतिदत्ते-बृहस्पतिदत्त। पुरोहिते-पुरोहित। णं-वाक्यालंकारार्थक है। चउसटुिं-चौंसठ-६४। वासाइं-वर्षों की। परमाउं-परमायु। पालइत्ता-पाल कर-भोगकर। अजेव-आज ही। तिभागावसेसे-त्रिभागावशेष अर्थात् जिस में तीसरा भाग शेष हो, ऐसे। दिवसे-दिन में। सूलभिण्णे-सूली से भेदन। कते समाणे-किया हुआ। कालमासे-कालावसर में। कालं किच्चाकाल करके। इमीसे-इस। रयणप्पभाए-रत्नप्रभा नामक पृथिवी-नरक में उत्पन्न होगा। संसारोसंसारभ्रमण / तहेव-तथैव-वैसे ही अर्थात् पहले की भांति समझना। जाव-यावत् / पुढवीए०-पृथिवीकाया में लाखों बार उत्पन्न होगा, वहां से निकल कर। हत्थिणाउरे-हस्तिनापुर। णगरे-नगर में। मियत्ताएमगरूप से। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगा। से णं-वह। तत्थ-वहां पर। वाउरिएहिं-वागरिकों-शिकारियों के द्वारा / वहिते समाणे-मारा जाने पर।तत्थेव-उसी / हत्थिणाउरे-हस्तिनापुर। णगरे-नगर में। सेट्ठिकुलंसिश्रेष्ठिकुल में। पुत्तत्ताए०-पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। बोहि-सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा, वहां से। सोहम्मे०सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा, वहां से च्यव कर। महाविदेहे-महविदह क्षेत्र में उत्पन्न होगा, तथा वहां से। सिज्झिहिति ५-सिद्धि प्राप्त करेगा 5 / णिक्खेवो-निक्षेप-उपसंहार पूर्व की भान्ति जान लेना चाहिए। पंचमं-पांचवां / अज्झयणं-अध्ययन / समत्तं-सम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ-हे गौतम ! बृहस्पतिदत्त पुरोहित 64 वर्ष की परमायु को पाल कर आज प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / पंचम अध्याय [505