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________________ तृतीय अध्याय में कर दी गई है। परन्तु इतना ध्यान रहे कि वहां पुरिमताल नगर का नामोल्लेख है, जब कि यहां कौशाम्बी नगरी का। शेष वर्णन सम ही है। 5. मूल में पढ़े गए चिन्ता शब्द "-तते णं से भगवओ गोतमस्स तं पुरिसं पासित्ता इमे अज्झत्थिए 5 समुप्पज्जित्था, अहो णं इमे पुरिसे जाव निरयपडिरूवियं वेयणं वेदेति" इन पदों का परिचायक है। इन पदों का अर्थ तथा तहेव-पद से जो विवक्षित है उस का उल्लेख द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां वाणिजग्राम नगर का उल्लेख है जब कि यहां कौशाम्बी नगरी का। तथा वहां श्री गौतम स्वामी ने वाणिजग्राम के राजमार्ग पर देखे दृश्य का वर्णन भगवान् को सुनाया था जब कि यहां कौशाम्बी नगरी के राजमार्ग पर देखे हुए दृश्य का। शेष वर्णन समान ही है। _अब सूत्रकार गौतमस्वामी द्वारा कौशाम्बी नगरी के राजमार्ग पर देखे गए एक वध्य व्यक्ति के पूर्वभवसम्बन्धी प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फरमाया उसका वर्णन करते मूल-एवं खलु गोतमा ! तेणं कालेणं 2 इहेव जम्बहीवे दीवे भारहे वासे सव्वओभद्दे णामं णगरे होत्था, रिद्ध / तत्थ णं सव्वओभद्दे णगरे जितसत्तू णामं राया होत्था। तस्स णं जितसत्तुस्स रण्णो महेसरदत्ते नामं पुरोहिए होत्था। रिउव्वेय-जजुव्वेय-सामवेय-अथव्वणवेय-कुसले यावि होत्था। तते णं से महेसरदत्ते पुरोहिते जितसत्तुस्स रण्णो रज्जबलविवद्धणट्ठाए कल्लाकल्लिं एगमेगं माहणदारगं एगमेगं खत्तियदारगं एगमेगं वइस्सदारगं एगमेगं सुद्ददारगं गेण्हावेति 2 त्ता तेसिं जीवंतगाणं चेव हिययउंडए गेण्हावेति 2 त्ता जितसत्तुस्स रण्णो संतिहोमं करेति, तते णं से महेसरदत्ते पुरोहिते अट्ठमीचउद्दसीसु दुवे 2 माहण-खत्तिय-वेस्स-सुद्द-दारगे, चउण्हं मासाणं चत्तारि 2, छण्हं मासाणं अट्ठ 2, संवच्छरस्स सोलस 2 / जाहे वि य णं जितसत्तू राया परबलेणं अभिजुज्झति ताहे-ताहे वि यणं से महेसरदत्ते पुरोहिए अट्ठसयं माहणदारगाणं, अट्ठसयं खत्तियदारगाणं, अट्ठसयं वइस्सदारगाणं, अट्ठसयं सुद्ददारगाणं पुरिसेहिं गिण्हावेति 2 तेहिं जीवंतगाणं चेव हिययउंडए गेण्हावेति 2 जितसत्तुस्स रण्णो संतिहोमं करेति, तते णं से परबलं खिप्पामेव विद्धंसेति वा पडिसेहिज्जति वा। छाया-एवं खलु गौतम ! तस्मिन् काले 2 इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / पंचम अध्याय [489
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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