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________________ तो मांसाहार के त्याग की ऐसी उत्तमोत्तम शिक्षाओं से भरे पड़े हैं। किन्तु जैनेतर धर्मशास्त्र भी. इस का अर्थात् मांसाहार का पूरे बल से निषेध करते हैं। उन के कुछ प्रमाण निम्नोक्त हैं (1) नकिर्देवा मिनीमसी न किरा योपयामसि। (ऋग्वेद-(१०-१३४-७) अर्थात् हम न किसी को मारें और न किसी को धोखा दें। (2) सर्वे वेदा न तत्कुर्युः सर्वे यज्ञाश्च भारत ! सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च, यत् कुर्यात् प्राणिनां दया॥१॥(महा० शा॰ पर्व प्रथमपाद) अर्थात् हे अर्जुन ! जो प्राणियों की दया फल देती है वह फल चारों वेद भी नहीं देते और न समस्त यज्ञ देते हैं तथा सम्पूर्ण तीर्थों के स्नान भी वह फल नहीं दे सकते हैं। अहिंसा लक्षणो धर्मो, ह्यधर्मः प्राणिनां वधः। तस्माद् धर्मार्थिभिर्लोकैः कर्त्तव्या प्राणिनां दया॥२॥ अर्थात् दया ही धर्म है और प्राणियों का वध ही अधर्म है। इस कारण से धार्मिक पुरुषों को सदा दया ही करनी चाहिए, क्योंकि विष्ठा के कीड़ों से लेकर इन्द्र तक सब को जीवन की आशा और मृत्यु से भय समान है। यावन्ति पशुरोमाणि, पशुगात्रेषु भारत ! तावद् वर्षसहस्राणि, पच्यन्ते पशुघातकाः॥३॥ अर्थात् हे अर्जुन ! पशु के शरीर में जितने रोम होते हैं, उतने हज़ार वर्ष पशु का घात करने वाले नरकों में जाकर दुःख पाते हैं। लोके यः सर्वभूतेभ्यो ददात्यभयदक्षिणाम्। / स सर्वयज्ञैरीजानः प्राप्नोत्यभयदक्षिणाम्॥४॥ अर्थात् इस जगत में जो मनुष्य समस्त प्राणियों को अभयदान देता है वह सारे यज्ञों का अनुष्ठान कर चुकता है और बदले में उसे अभयत्व प्राप्त होता है। (3) वर्षे वर्षे अश्वमेधेन, यो यजेत शतं समाः। ___मासांनि न च खादेत्, यस्तयोः पुण्यफलं समम् ॥५३॥(मनु० अध्या० 5) अर्थात् वर्ष-वर्ष में किए जाने वाले अश्वमेध यज्ञ को जो सौ वर्ष तक करता है, अर्थात् सौ वर्ष में जो लगातार सौ यज्ञ कर डालता है उसका और मांस न खाने वाले का पुण्यफल समान होता है। (4) प्राणिघातात्तु यो धर्ममीहते मूढमानसः। स वाञ्छति सुधावृष्टिं कृष्णाहिमुखकोटरात् // 1 // (पुराण) . अर्थात् प्राणियों के नाश से जो धर्म की कामना करता है वह मानों श्यामवर्ण वाले सर्प 480 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रृंतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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