________________ वाराणसी नगरी में एक श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। वहां वह सम्यक्त्व को तथा अनगारधर्म को प्राप्त करके सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में देवता बनेगा, वहां से च्यव कर वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा, वहां पर साधुवृत्ति का सम्यक्तया पालन करके वह सिद्धि-कृतकृत्यता प्राप्त करेगा, केवल ज्ञान द्वारा समस्त पदार्थों को जानेगा, सम्पूर्ण कर्मों से रहित हो जाएगा और सब दुःखों का अन्त करेगा। निक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्ववत् कर लेनी चाहिए। ॥चतुर्थ अध्ययन समाप्त॥ - टीका-शकटकुमार के भावी जीवन के विषय में श्री गौतम स्वामी के द्वारा प्रार्थना के रूप में व्यक्त की गई जिज्ञासा की पूर्ति के लिए परम दयालु श्रमण भगवान् महावीर ने जो कुछ फरमाया वह निम्नोक्त है हे गौतम ! शकट कुमार की पूरी आयु 57 वर्ष की है अर्थात् उसने पूर्वभव में जितना आयुष्य कर्म बान्ध रखा था, उसके पूरे हो जाने पर वह आज ही दिन के तीसरे भाग में अर्थात् अपराह्न समय में कालधर्म को प्राप्त करेगा। पूर्वोपार्जित पापकर्मों के प्रभाव से उस की मृत्यु का साधन भी बड़ा विकट होगा। जिस समय राजकीय पुरुष प्रधान मंत्री सुषेण की आज्ञा से निर्दयता-पूर्वक ताड़ित करते हुए शकट कुमार को वधस्थल पर ले जाकर खड़ा करेंगे, उस समय प्रधान मंत्री के आदेश से एक लोहमयी स्त्रीप्रतिमा लाई जाएगी और आग में तपाकर उसे लाल कर दिया जाएगा, उस लोहमयी अग्नितुल्य संतप्त और प्रदीप्त प्रतिमा के साथ शकट कुमार को बलात् चिपटाया जाएगा। उसके साथ आलिंगित कराए जाने पर शकट कुमार काल को प्राप्त होगा। इस प्रकार काल को प्राप्त होकर वह रत्नप्रभा नाम की पहली नरक में जाकर जन्म लेगा। वहां पर नरकजन्य तीव्र वेदनाओं का अनुभव करेगा। ___नरक की भवस्थिति को पूरा करने के बाद वह वहां से निकल कर राजगृह नगर के एक चांडालकुल में युगलरूप में उत्पन्न होगा अर्थात् मातंग की स्त्री के गर्भ से दो जीव उत्पन्न होंगे, एक बालक दूसरी कन्या। उनके माता-पिता बालक का नाम शकट और कन्या का नाम 1. प्रस्तुत कथा सन्दर्भ में जो यह लिखा है कि शकट कुमार को वध्यस्थल पर ले जाकर अपराह्नकाल में लोहमयी तप्त स्त्रीप्रतिमा से बलात् आलिङ्गित कराया जाएगा और वहां उसकी मृत्यु हो जाएगी, इस पर यह आशंका होती है कि जब साहंजनी नगरी के राजमार्ग पर शकट कुमार के साथ बड़ा निर्दय एवं क्रूर व्यवहार किया गया था, उसके कान और नाक काट लिए गए थे, उसके शरीर में से मांसखण्ड निकाल कर उसे खिलाए जा रहे थे, और चाबुकों के भीषण प्रहारों से उसे मारा जा रहा था, तब ऐसी स्थिति में उसके प्राण कैसे बच पाए ? अर्थात् मानव प्राणी में इतना शारीरिक बल कहां है कि वह इस प्रकार के नरकसदृश दुःखों का उपभोग कर लेने पर भी जीवित रह सके ? इस आशंका का उत्तर द्वितीय अध्याय में दे दिया गया है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां अभग्नसेन के सम्बन्ध में विचार किया गया है जब कि प्रस्तुत में शकट कुमार के सम्बन्ध में। * प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [475