________________ महाविदेहे-महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा, वहां पर संयम के सम्यक् आराधन से च्यव कर। सिज्झिहिति ५-सिद्धि प्राप्त करेगा अर्थात् कृतकृत्य हो जाएगा, केवल ज्ञान प्राप्त करेगा, कर्मों से रहित होगा, कर्मजन्य संताप से विमुक्त होगा और सब दुःखों का अंत करेगा। निक्खेवो-निक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्ववत् कर लेनी चाहिए। चउत्थं-चतुर्थ। अज्झयणं-अध्ययन। समत्तं-सम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ-हे गौतम !शकट कुमार 57 वर्ष की परम आयु को पाल कर-भोग कर आज ही तीसरा भाग शेष रहे दिन में एक महान् लोहमय तपी हुई अग्नि के समान देदीप्य-मान स्त्रीप्रतिमा से आलिंगित कराया हुआ मृत्यु समय में काल करके रत्नप्रभा नाम की पहली पृथ्वी-नरक में नारकी रूप से उत्पन्न होगा। वहां से निकल कर सीधा राजगृह नगर में मातंग-चांडाल के कुल में युगलरूप से उत्पन्न होगा, उस युगल (वे दो बच्चे जो एक ही गर्भ से साथ उत्पन्न हुए हों) के माता पिता बारहवें दिन उन में से बालक का शकटकुमार और कन्या का सुदर्शना कुमारी यह नामकरण करेंगे। शकट कुमार बाल्यभाव को त्याग कर यौवन को प्राप्त करेगा। सुदर्शना कुमारी भी बाल्यभाव से निकल कर विशिष्ट ज्ञान तथा बुद्धि आदि की परिपक्वता को प्राप्त करती हुई युवावस्था को प्राप्त होगी। वह रूप में, यौवन में और लावण्य में उत्कृष्ट-उत्तम एवं उत्कृष्ट शरीर वाली होगी। तदनन्तर सुदर्शना कुमारी के रूप, यौवन और लावण्य-आकृति की सुन्दरता में मूर्च्छित-उस के ध्यान में पगला बना हुआ, गृद्ध-उसकी इच्छा रखने वाला, ग्रथितउसके स्नेहजाल से जकड़ा हुआ और अध्युपपन्न-उसी की लग्न में अत्यन्त ध्यासक्त रहने वाला वह शकट कुमार अपनी बहन सुदर्शना के साथ उदार-प्रधान मनुष्यसम्बन्धी कामभोगों का सेवन करता हुआ जीवन व्यतीत करेगा। तदनन्तर किसी समय वह शकट कुमार स्वयमेव कूटग्राहित्व को प्राप्त कर विहरण करेगा, तब कूटग्राह (कपट से जीवों को वश करने वाला) बना हुआ वह शकट महा अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानन्द होगा, और इन कर्मों के करने वाला, इन में प्रधानता लिए हुए तथा इन के विज्ञान वाला एवं इन्हीं पापकर्मों को अपना सर्वोत्तम आचरण बनाए हुए अधर्मप्रधान कर्मों से वह बहुत से पाप कर्मों को उपार्जित कर मृत्युसमय में काल करके रत्न-प्रभा नामक पहली पृथ्वी-नरक में नारकी रूप से उत्पन्न होगा। उस का संसारभ्रमण पूर्ववत् ही जान लेना यावत् पृथिवीकाया में लाखों बार उत्पन्न होगा, तदनन्तर वहां से निकल कर वह सीधा वाराणसी नगरी में मत्स्य के रूप में . जन्म लेगा, वहां पर मत्स्य-घातकों के द्वारा वध को प्राप्त होता हुआ वह फिर उसी 474 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध