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________________ अध्याय की टिप्पण में की जा चुकी है। तथा-अट्ठि जाव महियं-यहां के जाव-यावत् पद, से-मुट्ठि-जाणु-कोप्पर-प्पहार-संभग्ग-इन पदों का ग्रहण करना अर्थात् सुषेण मंत्री शकट कुमार को यष्टि-लाठी, मुष्टि, जानु-घुटने, कूर्पर-कोहनी के प्रहारों से संभग्न-चूर्णित तथा मथित कर डालता है। दूसरे शब्दों में -जिस प्रकार दही मंथन करते समय दही का प्रत्येक कण मथित हो जाता है ठीक उसी प्रकार शकट कुमार का भी मन्थन कर डालते हैं। तात्पर्य यह है कि उसे इतना पीटा, इतना. मारा कि उस का प्रत्येक अंग तथा उपांग ताड़ना से बच नहीं सका। तथा-करयल जाव एवं-यहां के जाव-यावत् पद से अभिमत पाठ का उल्लेख पीछे . तृतीय अध्याय में किया जा चुका है। -दुच्चिण्णाणं जाव विहरति-यहां के जाव-यावत् पद से-दुप्पडिक्कन्ताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभीष्ट है। इन पदों का अर्थ प्रथम अध्याय में किया गया है। . गत सूत्रों तथा प्रस्तुत सूत्र में शकट कुमार के विषय में पूछे गए प्रश्न का उत्तर वर्णित हुआ है। अब अग्रिम सूत्र में इसी सम्बन्ध को लेकर गौतम स्वामी ने जो जिज्ञासा की है उस का वर्णन किया जाता है मूल-सगडे णं भन्ते ! दारए कालगते कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववन्जिहिति? छाया-शकटो भदन्त ! दारकः कालगतः कुत्र गमिष्यति ? कुत्रोपपत्स्यते ? पदार्थ-भंते !-हे भगवन् ! सगडे-शकट कुमार। दारए-बालक। णं-वाक्यालंकारार्थक है। कालगते-कालवश हुआ। कहिँ-कहां। गच्छिहिति ?-जाएगा ? कहिं-कहां पर। उववजिहिति?उत्पन्न होगा? मूलार्थ-हे भगवन् ! शकट कुमार बालक यहां से काल करके कहां जाएगा? और कहां पर उत्पन्न होगा? टीका-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से शकट कुमार के पूर्वभव का वृत्तान्त सुन लेने के पश्चात् गौतम स्वामी को उसके आगामी भवों के सम्बन्ध में विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करने की लालसा जागृत हुई। तदनुसार उन्होंने भगवान् से उसके आगामी भवों के सम्बन्ध में भी पूछ लेने का विचार किया। वे बड़े विनीतभाव के द्वारा वीर प्रभु से पूछने लगे कि हे भदन्त ! शकट कुमार यहां से काल करके कहां जाएगा? और कहां पर उत्पन्न होगा? मनोविज्ञान का यह नियम है कि जिस विषय में मन एक बार लग जाता है, उस विषय का अथ से इति पर्यन्त बोध प्राप्त करने की उस में लग्न सी हो जाती है। इसी नियम के अनुसार 470 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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