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________________ के साथ यथारुचि कामभोगों का उपभोग करते हुए उसने शकट कुमार को देखा और देख कर वह क्रोध के मारे लालपीला हो, दांत पीसता हुआ, मस्तक पर तीन बल वाली भृकुटि (तिउड़ी) चढ़ा लेता है और शकट कुमार को अपने पुरुषों से पकड़वा कर उस को यष्टि से यावत् मथित कर उसे अवकोटकबन्धन से जकड़वा देता है। तदनन्तर उसे महाराज महाचन्द्र के पास ले जा कर महाचन्द्र नरेश से दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि कर के इस प्रकार कहता है स्वामिन् ! इस शकट कुमार ने मेरे अन्तःपुर में प्रवेश करने का अपराध किया है। इसके उत्तर में महाराज महाचन्द्र सुषेण मन्त्री से इस प्रकार बोले-हे महानुभाव ! तुम ही इस के लिए दण्ड दे डालो अर्थात् तुम्हें अधिकार है जो भी उचित समझो, इसे दण्ड दे सकते हो। तत्पश्चात् महाराज महाचन्द्र से आज्ञा प्राप्त कर सुषेण मन्त्री ने शकट कुमार और सुदर्शना वेश्या को इस (पूर्वोक्त) विधान-प्रकार से मारा जाए, ऐसी आज्ञा राजपुरुषों को प्रदान की। इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! शकट कुमार बालक अपने पूर्वोपार्जित पुरातन तथा दुश्चीर्ण पापकर्मों के फल का प्रत्यक्ष अनुभव करता हुआ समय बिता रहा है। टीका-मनुष्य जो कुछ करता है अपनी अभीष्ट सिद्धि के लिए करता है। उस के लिए वह दिन रात एक कर देता है। महान् परिश्रम करने के अनन्तर भी यदि उस का अभीष्ट सिद्ध हो जाता है तो वह फूला नहीं समाता और अपने को सब से अधिक भाग्यशाली समझता है। परन्तु उस अल्पज्ञ प्राणी को इतना भान कहां से हो कि जिसे वह अभीष्ट सिद्धि समझ कर प्रसन्नता से फूल रहा है, वह उस के लिए कितनी हानि-कारक तथा अहितकर सिद्ध होगी? शकट कुमार अपनी परमप्रिया सुदर्शना को पुनः प्राप्त कर अत्यन्त हर्षित हो रहा है, तथा अपने सद्भाग्य की सराहना करता हुआ वह नहीं थकता। परन्तु उस बिचारे को यह पता नहीं था कि यह प्रसन्नता मधुलिप्त असिधारा से भी परिणाम में अत्यन्त भयावह होगी और उसका यह हर्ष भी शोकरूप से परिणत हुआ ही चाहता है। ___पाठकों को स्मरण होगा कि मंत्री सुषेण ने अपने सत्ताबल से सुदर्शना गणिका के घर से उसकी इच्छा के बिना ही शकट कुमार को बाहर निकाल कर उसे अपने घर में अपनी स्त्री के रूप में रख लिया था। परन्तु शकट कुमार अवसर देखकर गुप्तरूप से सुदर्शना के पास पहुंच गया और पूर्व की भान्ति गुप्तरूप से उसके सहवास में रहता हुआ यथारुचि विषय-भोगों में आसक्त हुआ सानन्द समय यापन करने लगा। इधर एक दिन सुषेण मंत्री जब सुदर्शना के घर में पहुंचा तो उसने वहां शकट कुमार 468 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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