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________________ स्नान किए हुए। जाव-यावत्। सव्वालंकारविभूसिते-सब प्रकार के अलंकारों-आभूषणों से विभूषित। मणुस्सवग्गुराए-मनुष्य समुदाय से। परिक्खित्ते-परिवेष्टित हुआ। जेणेव-जहाँ। सुदरिसणागणियाएसुदर्शना गणिका का। गिहे-घर था। तेणेव-वहीं पर। उवागच्छति २-आ जाता है, आकर / सुदरिसणाएसुदर्शना। गणियाए-गणिका के। सद्धिं-साथ। उरालाइं-उदार-प्रधान। भोगभोगाई-काम-भोगों का। भुंजमाणं-उपभोग करते हुए। सगडं दारयं-शकटकुमार को। पासति २-देखता है, देख कर।आसुरुत्तेआशुरुप्त-अत्यन्त क्रुद्ध हुआ। जाव-यावत्। मिसिमिसीमाणे-मिस-मिस करता हुआ, अर्थात् दांत पीसता हुआ। णिलाडे-मस्तक पर। तिवलियं भिउडिं-तीन बल वाली भृकुटी (तिउड़ी) को। साहट्ट-चढ़ा कर। पुरिसेहि-अपने पुरुषों के द्वारा। सगडं-शकटकुमार। दारयं-बालक को। गेण्हावेति २-पकड़ा लेता है, पकड़ा कर। अट्ठि-यष्टि से। जाव-यावत् उस, को। महियं-मथित-अत्यन्तात्यन्त ताड़ित। करेति-करता है। अवओडगबंधणं-अवकोटकबन्धन-जिस बन्धन में ग्रीवा को पृष्ठ भाग में ले जाकर हाथों के साथ बान्धा जाए, उस बंधन से युक्त। कारेति २-कराता है, करा के। जेणेव-जहां पर। महचंदे राया-महाचन्द्र राजा था। तेणेव-वहीं पर। उवागच्छति २-आता है, आकर। करयल० जाव-दोनों हाथ जोड़ यावत् अर्थात् मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि कर के। एवं-इस प्रकार। वयासी-कहने लगा। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। सामी !-हे स्वामिन् ! / सगडे-शकटकुमार। दारए-बालक ने। ममंमेरे। अंतेउरंसि-अन्तःपुर-रणवास में प्रविष्ट होने का। अवरद्धे-अपराध किया है। तते णं-तदनन्तर। महचंदे-महाचन्द्र। राया-राजा। सुसेणं-सुषेण। अमच्चं-अमात्य को। एवं-इस प्रकार। वयासी-कहने लगा। देवाणु० !-हे महानुभाव ! तुमं चेव णं-तुम ही। सगडस्स-शकटकुमार। दारगस्स-बालक को। दंडं-दण्ड। वत्तेहि-दे डालो। तए णं-तत्पश्चात् / महचंदेणं-महाचन्द्र / रण्णा-राजा से। अब्भणुण्णातेअभ्यनुज्ञात अर्थात् आज्ञा को प्राप्त / समाणे-हुआ। से-वह। सुसेणे-सुषेण।अमच्चे-मंत्री। सगडं दारयंशकट कुमार बालक। च-और। सुदरिसणं-सुदर्शना। गणियं-गणिका को। एएणं-इस (पूर्वोक्त)। विहाणेणं-विधान-प्रकार से। वझं-ये दोनों मारे जाएं, ऐसी। आणवेति-आज्ञा देता है। गोतमा !-हे गौतम ! तं-इस लिए। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। सगडे-शकट-कुमार। दारए-बालक। पुरापूर्वकृत। पोराणाणं-पुरातन, तथा। दुच्चिण्णाणं-दुश्चीर्ण-दुष्टता से किए गए। जाव-यावत् कर्मों का अनुभव करता हुआ। विहरति-समय बिता रहा है। मूलार्थ-सुदर्शना के घर से मन्त्री के द्वारा निकाले जाने पर वह शकट कुमार अन्यत्र कहीं पर स्मृति, रति और धृति को प्राप्त न करता हुआ किसी अन्य समय अवसर पाकर गुप्तरूपसे सुदर्शना के घर में पहुंच गया और वहां उसके साथ यथारुचि कामभोगों का उपभोग करता हुआ सानन्द समय व्यतीत करने लगा। इधर एक दिन स्नान कर और सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित हो कर अनेक मनुष्यों से परिवेष्टित हुआ सुषेण मन्त्री सुदर्शना के घर पर आया, आकर सुदर्शना 1. अट्ठि-इस पद का रूप यष्टि किस कारण से किया गया है इस का उत्तर द्वितीय अध्याय की टिप्पण में दिया गया है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [467
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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