SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तुत सूत्र में प्रस्तुत अध्ययन के मुख्य-मुख्य पात्रों का मात्र नाम निर्देश किया गया है। इन का विशेष वर्णन आगे किया जाएगा। अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में भगवान् महावीर स्वामी के पधारने और भिक्षार्थ गए हुए गौतम स्वामी के दृश्यावलोकन के विषय का वर्णन करते हैं मूल-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे, परिसा राया य निग्गते, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया राया वि णिग्गओ। तेणं कालेणं 2 समणस्स० जेटे अंतेवासी जाव रायमग्गे ओगाढे। तत्थ णं हत्थी, आसे, पुरिसे० तेसिं च ण पुरिसाणं मझगतं पासति एगं सइत्थियं पुरिसं अवओडगबंधणं उक्खित्तकण्णनासं, जाव उग्घोसणं चिंता तहेव जाव भगवं वागरेति। ____ छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरः समवसृतः। परिषद् राजा च निर्गतः। धर्मः कथितः। परिषद् प्रतिगता, राजापि निर्गतः। तस्मिन् काले 2 श्रमणस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी यावद् राजमार्गेऽवगाढः। तत्र हस्तिनोऽश्वान् पुरुषान् तेषां च पुरुषाणां मध्यगतं पश्यति एकं सत्रीकं पुरुषं, अवकोटकबंधनम्, उत्कृत्तकर्णनासं, यावद् उद्घोषणं, चिंता तथैव यावद् भगवान् व्याकरोति। पदार्थ-तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में। समणे-श्रमण। भगवंभगवान् / महावीरे-महावीर स्वामी। समोसढे-पधारे। परिसा य-परिषद्-जनता तथा। राया-राजा, नगर से। निग्गते-निकले। धम्मो-धर्म का। कहिओ-प्ररूपण किया। परिसा-परिषद् / पडिगया-चली गई। राया-राजा। वि-भी। णिग्गओ-चला गया। तेणं कालेणं २-उस काल तथा उस समय में। समणस्सश्रमण भगवान् महावीर स्वामी के। जेद्वे-ज्येष्ठ-प्रधान। अंतेवासी-शिष्य। जाव-यावत्। रायमग्गेराजमार्ग में। ओगाढे-गये। तत्थ णं-वहां पर। हत्थी-हस्तियों को। आसे-अश्वों को, तथा। पुरिसे०पुरुषों को देखते हैं। तेसिं च-और उन। पुरिसाणं-पुरुषों के। मझगतं-मध्य में। सइत्थियं-स्त्री के सहित / अवओडगबंधणं-अवकोटकबंधन अर्थात् जिस बंधन में गल और दोनों हाथों को मोड़ कर पृष्ठभाग पर रज्जु के साथ बांधा जाए उस बंधन से युक्त। उक्खित्तकण्णनासं-जिस के कान और नासिका कटे हुए हैं। जाव-यावत् / उग्घोसणं-उद्घोषणा से युक्त / एगं-एक। पुरिसं-पुरुष को। पासतिदेखते हैं, देखकर। चिंता-चिन्तन करने लगे। तहेव-तथैव। जाव-यावत्।भगवं-भगवान् महावीर स्वामी। वागरेति-प्रतिपादन करने लगे। मूलार्थ-उस काल तथा उस समय साहंजनी नगरी के बाहर देवरमण उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे। नगर से भगवान् के दर्शनार्थ जनता और राजा 444 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy