SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तस्य सुभद्रस्य सार्थवाहस्य भद्रा नाम भार्याऽभूदहीन / तस्य सुभद्रस्य सार्थवाहस्य पुत्रः भद्राया भार्याया आत्मजः शकटो नाम दारकोऽभूदहीन। पदार्थ-चउत्थस्स-चतुर्थ अध्ययन का। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्ववत् जान लेना चाहिए। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। जंबू !-हे जम्बू ! तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में। साहंजणी-साहजनी। णाम-नाम की। णगरी-नगरी। होत्था-थी, जो कि। रिद्धस्थिमिय०-द्धभवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित-स्वचक्र और परचक्र के भय से रहित, समृद्ध-धन तथा धान्यादि से परिपूर्ण थी। तीसे णं-उस। साहंजणीए-साहजनी।णयरीए-नगरी के। बहिया-बाहर / उत्तरपुरस्थिमेउत्तर तथा पूर्व / दिसीभाए-दिशा के मध्य भाग में अर्थात् ईशान कोण में। देवरमणे-देवरमण / णाम-नाम का। उजाणे-उद्यान। होत्था-था। तत्थ णं-उस उद्यान में। अमोहस्स-अमोघ नाम के। जक्खस्स-यक्ष का। जक्खायतणे-यक्षायतन-स्थान।होत्था-था। पुराणे०-जो कि पुरातन था। तत्थणं-उस।साहंजणीएसाहजनी। णयरीए-नगरी में। महचंदे-महाचन्द्र। णाम-नामक / राया-राजा। होत्था-था। महता-जो कि हिमालय आदि पर्वतों के समानं दूसरे राजाओं की अपेक्षा महान् था। तस्स णं-उस। महचंदस्स.. महाचन्द्र। रण्णो-राजा का। साम-सामनीति। भेय-भेदनीति। दंड-दंड नीति का प्रयोग करने वाला और न्याय अथवा नीतियों की विधियों को जानने वाला, तथा। निग्गह-निग्रह करने में। कुसले-प्रवीण। सुसेणे-सुषेण।णाम-नाम का।अमच्चे-अमात्य-मन्त्री। होत्था-था। तत्थ णं-उस। साहंजणीए-साहजनी। णयरीए-नगरी में। सुदरिसणा-सुदर्शना / णाम-नाम की। गणिका-गणिका-वेश्या। होत्था-थी।वण्णओवर्णक-वर्णनप्रकरण पूर्ववत् जान लेना चाहिए। तत्थ णं-उस। साहंजणीए-साहजनी। णयरीए-णगरी में। सुभद्दे-सुभद्र। णाम-नाम का। सत्थवाहे-सार्थवाह। होत्था-था, जो कि। अड्ढे०-धनी एवं बड़ा प्रतिष्ठित था। तस्स णं-उस। सुभहस्स-सुभद्र। सत्थवाहस्स-सार्थवाह की। भद्दा-भद्रा / नाम-नाम की। * भारिया-भार्या। होत्था-थी, जो कि। अहीण-अन्यून एवं निर्दोष पञ्चेन्द्रिय शरीर वाली थी। तस्स णंउस। सुभद्दस्स-सुभद्र। सत्थवाहस्स-सार्थवाह का। पुत्ते-पुत्र और / भद्दाए-भद्रा। भारियाए-भार्या का। अत्तए-आत्मज। सगडे-शकट। नाम-नाम का। दारए-बालक। होत्था-था, जो कि। अहीण-अन्यून एवं निर्दोष पंचेन्द्रिय शरीर से युक्त था। मूलार्थ-जम्बू स्वामी के "-हे भदन्त ! यदि तीसरे अध्ययन का इस प्रकार से अर्थ प्रतिपादन किया है तो भगवन् ! चतुर्थ अध्ययन का क्या अर्थ वर्णन किया है ?-" इस प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी फरमाने लगे कि हे जम्बू ! उस काल और उस समय में साहंजनी नाम की एक ऋद्ध, स्तिमित एवं समृद्ध नगरी थी। उसके बाहर ईशान कोण में देवरमण नाम का एक उद्यान था, उस उद्यान में अमोघ नामक यक्ष का एक पुरातन यक्षायतन-स्थान था। उस नगरी में महाचन्द्र नाम का राजा राज्य किया करता था जो कि हिमालय आदि पर्वतों के समान अन्य राजाओं की अपेक्षा महान् तथा प्रतापी था। उस महाचन्द्र नरेश का सुषेण नाम का एक मन्त्री था जो कि सामनीति, भेदनीति प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [439
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy