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________________ वासाइं परमाउयं पालइत्ता अजेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिन्ने कते समाणे कालगते इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसे. नेरइएसु उवविजिहिइ। से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता, एवं संसारो जहा पढमे जाव पुढवीए / ततो उव्वट्टित्ता वाणारसीए णगरीए सूयरत्ताए पच्चायाहिति, सेणं तत्थ सोयरिएहिं जीवियाओ ववरोविए समाणे तत्थेव वाणारसीए णगरीए सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिति, से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे, एवं जहा पढमे, जाव अंतं काहि त्ति निक्खेवो। ॥तइयं अज्झयणं समत्तं॥ .. छाया-अभग्नसेनो भदन्त ! चोरसेनापतिः कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्रोपपस्यते? गौतम ! अभग्नसेनश्चोरसेनापतिः सप्तत्रिंशतेवर्षाणि परमायुः पालयित्वा अद्यैव त्रिभागावशेषे दिवसे शूलभिन्नः कृतः सन् कालगतोऽस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां उत्कर्षेण नैरयिकेषूपपत्स्यते। ततोऽनन्तरमुढत्य, एवं संसारो यथा प्रथमो यावत् पृथिव्याम् / तत उद्धृत्य वाराणस्यां नगर्यां शूकरतया प्रत्यायास्यति स तत्र शौकरिकैर्जीवनाद् व्यपरोपितः सन् तत्रैव वाराणस्यां नगर्यां श्रेष्ठिकुले पुत्रतया प्रत्यायास्यति। स तत्रोन्मुक्तबालभावः, एवं यथा प्रथमः यावदन्तं करिष्यतीति निक्षेपः। // तृतीयमध्ययनं समाप्तम् // पदार्थ-भंते !-हे भगवन् ! अभग्गसेणे णं-अभग्नसेन। चोरसेणावती-चोरसेनापति। कालमासे-कालमास में-मृत्यु के समय। कालं किच्चा-काल कर के। कहिं-कहां। गच्छिहिइ ?जाएगा? कहिं-कहां पर / उववजिहिइ-उत्पन्न होगा? गोतमा !-हे गौतम ! अभग्गसेणे-अभग्नसेन / चोरसे०-चोरसेनापति। सत्तातीसं-सैंतीस 37 / वासाइं-वर्षों की। परमाउयं-परमायु। पालइत्ता-पाल कर-भोग कर। अज्जेव-आज ही। तिभागावसेसे-त्रिभागावशेष अर्थात् जिस का तीसरा भाग बाकी हो ऐसे। दिवसे-दिन में। सूलभिन्ने-सूली से भिन्न। कते समाणे-किया हुआ। कालगते-काल-मृत्यु को प्राप्त हुआ। इमीसे-इस। रयणप्पभाए-रत्नप्रभा नामक / पुढवीए-नरक में। उक्कोसे०-जिन की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है, ऐसे। नेरइएसु-नारकियों में। उववज्जिहिइ-उत्पन्न होगा। ततो-वहां सेनरक से। अणंतरं-व्यवधान रहित। उव्वट्टित्ता-निकल कर। से णं-वह। एवं-इसी प्रकार। संसारोसंसारभ्रमण करता हुआ। जहा-जैसे। पढमे-प्रथम अध्ययनगत मृगापुत्र का वर्णन किया है। जाव-यावत्। पढवीए०-पृथ्वीकाया में लाखों बार उत्पन्न होगा। ततो-वहां से। उव्वद्वित्ता-निकल कर। वाणारसीएबनारस नामक। णगरीए-नगर में। सूयरत्ताए-शूकर रूप में। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगा। तत्थ-वहां पर। से णं-वह। सोयरिएहिं-शूकर का शिकार करने वालों के द्वारा। जीवियाओ-जीवन से। ववरोविए समाणे-रहित किया हुआ। तत्थेव-उसी। वाणारसीए-बनारस नामक। णगरीए-नगरी में। सेट्टिकुलंसिप्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [429
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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