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________________ है महाबल नरेश ने जो कुछ किया वह धार्मिक दृष्टि से तो भले ही अनुमोदना के योग्य न हो परन्तु राजनीति की दृष्टि से उसे अनुचित नहीं कह सकते। एक आततायी अथच अत्याचारी का निग्रह जिस तरह से भी हो, कर देने की नीतिशास्त्र की प्रधान आज्ञा है। अभग्नसेन जहां शूरवीर और साहसी था, वहां वह लुटेरा, डाकू और आततायी भी था, अतः जहां उसे वीरता के लिए नीतिशास्त्र के अनुसार प्रशंसा के योग्य समझा जाए वहां उसके अत्याचारों को अधिक से अधिक निन्दास्पद मानने में भी कोई आपत्ति नहीं हो सकती। . नीतिशास्त्र का कहना है कि जो राजा निरपराध और आततायियों के अत्याचारों से पीड़ित प्रजा की पुकार को सुन कर उस के दुःख निवारणार्थ अत्याचार करने वालों को शिक्षित नहीं करता, दण्ड नहीं देता, वह कभी भी शासन करने के योग्य नहीं ठहराया जा सकता। इसी लिए नीति शास्त्र के मर्मज्ञ महाबल नरेश ने अभग्नसेन चोरसेनापति का निग्रह करने के लिए राजपुरुषों को बुला कर आज्ञा दी कि भद्रपुरुषो ! अभी जाओ और जा कर पुरिमताल नगर के द्वार बन्द कर दो तथा कूटाकारशाला में अवस्थित अभग्नसेन चोरसेनापति को बन्दी बना कर मेरे सामने उपस्थित करो, परन्तु इतना ध्यान रखना कि तुम्हारा यह काम इतनी सावधानी और तत्परता से होना चाहिए कि अभग्नसेन जीवित ही पकड़ा जाए, कहीं वह अपने को असहाय पा कर आत्महत्या न कर डाले। अथवा उसकी पकड़कड़ में कहीं उस पर कोई मार्मिक प्रहार न कर देना जिस से उस का वहीं जीवनान्त हो जाए, अर्थात् उसे जीवित ही पकड़ना है, इस बात का विशेष ध्यान रखना, ताकि प्रजा को पीड़ित करने के फल को वह तथा प्रजा अपनी आंखों से देख सके। आज्ञा मिलते ही महाराज को नमस्कार कर राजपुरुष वहां से चले और पुरिमताल नगर के द्वार उन्होंने बन्द कर दिए, तथा कूटाकारशाला में जा कर अभग्नसेन चोरसेनापति को जीते जी पकड़ लिया एवं बन्दी बना कर महाराज महाबल के सामने उपस्थित किया। बन्दी के रूप में उपस्थित हुए अभग्नसेन चोरसेनापति को देख कर तथा उस के दानवीय कृत्यों को याद कर महाबल नरेश क्रोध से तमतमा उठे और दान्त पीसते हुए उन्होंने मंत्री को आज्ञा दी कि पुरिमताल नगर के प्रत्येक चत्वर पर बैठा कर इसे तथा इस के सहयोगी सभी पारिवारिक व्यक्तियों को ताड़नादि द्वारा दण्डित करो एवं विडम्बित करो, ताकि इन्हें अपने कुकृत्यों का फल मिल जाए और जनता को चोरों एवं लुटेरों का अन्त में क्या परिणाम होता है यह पता चल जाए तथा अन्त में इसे सूली पर चढ़ा दो। ' मंत्री ने महाबल नरेश की इस आज्ञा का जिस रूप में पालन किया उस का दिग्दर्शन 424 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय . [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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