________________ हो गई। दोनों तरफ से गोलियों और बाणों की वर्षा होने लगी। परन्तु जितनी अनुकूलता प्रहार करने के लिए अभग्नसेन के सैनिकों की थी, उतनी दंडनायक के सैनिकों को नहीं थी। कारण यह था कि दण्डनायक के सैनिक पर्वत के नीचे थे और अभग्नसेन के पर्वत के ऊपर। वे गोलियां और बाण मार कर वहीं छिप जाते थे जबकि इन को छिपने के लिए कोई स्थान नहीं था। इसलिए दंडनायक की सेना को इस युद्ध में सब से अधिक क्षति पहुंची। परिणामस्वरूप वह चोरसेनापति की मार को न सह सका। उसके बहुत से सैनिक मारे गए और वह स्वयं भी इस युद्ध में अत्यधिक विक्षुब्ध हुआ और परास्त होकर पीछे पुरिमताल राजधानी को लौट गया। -"हयमहिय जाव पडिसेहेति"-यहां पठित जाव-यावत् पद से-हयमहियपवरवीरघाइयविवडियचिन्धज्झयपडागं दिसो दिसिं-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन पदों की वृत्तिकार-सम्मत व्याख्या इस प्रकार है. हतः सैन्यस्य हतत्वात्, मथितो-मानस्य मन्थनात् प्रवरवीराः-सुभटाः घातिताःविनाशिताः यस्य स तथा, विपतिताश्चिह्नध्वजा गरुडादिचिह्नयक्तकेतवः पताकाश्च यस्य स तथा, ततः पदचतुष्टयस्य कर्मधारयः।अतस्तं सर्वतो रणाद् निवर्तयति" अर्थात् जावयावत्-पद से विवक्षित पाठ में दण्डनायक के हत, मथित आदि चार विशेषण हैं। इन का अर्थ निम्नोक्त है (1) हत-जिस के सैन्यबल को आहत कर दिया, अर्थात् जख्मी बना डाला है। (2) मथित-जिस के मान का मन्थन-मर्दन किया गया है। (3) प्रवरवीरघातितजिसके प्रवर-अच्छे-अच्छे वीरों-योद्धाओं का विनाश कर दिया गया है। (4) विपतितचिन्हध्वजपताक-जिस की गरुडादि के चिन्हों से युक्त ध्वज और पताकाएं (झण्डियां) गिरा दी गई हैं। -"दिसो दिसिं"- इस पद के दो अर्थ उपलब्ध होते हैं। जैसे कि-(१) रणक्षेत्र से सर्वथा हटा देना-भगा देना। (2) सामने की दिशा से अर्थात् जिस दिशा में मुख है उस से अन्य दिशाओं में भगा देना। पुरिमताल राजधानी की ओर लौटने के बाद दण्डनायक महाबल नरेश की सेवा में उपस्थित हुआ। अभग्नसेन द्वारा पराजित होने के कारण वह निस्तेज, निर्बल और पराक्रमहीन हो रहा था। उसने बड़े विनीत भाव से निवेदन करते हुए कहा, कि महाराज ! बड़ी विकट समस्या है। चोरसेनापति अभग्नसेन जिस स्थान में इस समय बैठा हुआ है, वहां उस पर आक्रमण करना, और उसे पकड़ कर लाना कठिन ही नहीं किन्तु असम्भवप्रायः है। उसके प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [407