________________ सन्नद्ध जाव पहरणेहिं सद्धिं संपरिवुडे मगइएहिं फलएहिं जाव छिप्पतूरेणं , वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठ जाव करेमाणे पुरिमतालं णगरं मझमझेणं निग्गच्छति 2 त्ता जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए। छाया-ततः स महांबलो राजा तेषां जानपदानां पुरुषाणामन्तिके एतमर्थं श्रुत्वा निशम्य आशुरुतो यावत् मिसमिसीमाणः (क्रुधा ज्वलन्) त्रिवलिकां भृकुटिं ललाटे संहृत्य दण्डं श्ब्दाययति 2 एवमवादीत्-गच्छ त्वं देवानुप्रिय! शालाटवीं चोरपल्ली विलुम्प 2 अभग्नसेनं चोरसेनापतिं जीवग्राहं गृहाण 2 मह्यमुपनय / ततः स दंडः तथेति विनयेन एतमर्थं प्रतिशृणोति। ततः स दण्डो बहुभिः पुरुषैः सन्नद्ध० यावत् प्रहरणैः सार्द्ध संपरिवृतो हस्तपाशितैः (हस्तबद्धैः) फलकैः यावत् क्षिप्रतूरेण वाद्यमानेन महतोत्कृष्ट० यावत् कुर्वन् पुरिमतालनगरात् मध्य-मध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव. शालाटवी चोरपल्ली तत्रैव प्रादीधरद् (प्रधारितवान्) गमनाय। पदार्थ-ततेणं-तदनन्तर।से-उस।महब्बले-महाबल। राया-राजा ने। तेसिं-उन ।जाणवयाणंजनपद-देश में रहने वाले। पुरिसाणं-पुरुषों को। अन्तिए-पास से। एयमटुं-इस बात को। सोच्चासुनकर तथा। निसम्म-अवधारण कर वह। आसुरुत्ते-आशुरुप्त-शीघ्र क्रोध से परिपूर्ण हुआ। जावयावत्। मिसिमिसीमाणे-क्रोधातुर होने पर किए जाने वाले शब्दविशेष का उच्चारण करता हुआ अर्थात् : मिसमिस करता हुआ-दांत पीसता हुआ। तिवलियं भिउडिं-त्रिवलिका-तीन रेखाओं से युक्त भृकुटिभ्रू-भंग को। निडाले-मस्तक पर। साहट्ट-धारण कर के। दंड-दंडनायक-कोतवाल को। सद्दावेति २-बुलाता है, बुला कर। एवं वयासी-इस प्रकार कहता है। देवाणुप्पिया !-हे देवानुप्रिय! अर्थात् हे भद्र! तुम-तुम / गच्छह णं-जाओ, जाकर / सालाडविं-शालाटवी। चोरपल्लिं-चोरपल्ली को। विलुपाहि २-नष्ट कर दो-लूट लो, लूट कर के। अभग्गसेणं-अभग्नसेन नामक। चोरसेणावई-चोरसेनापति को। जीवग्गाहं-जीते जी। गेण्हाहि-पकड़ लो, पकड़ कर / मम-मेरे पास। उवणेहि-उपस्थित करो। तते णंतदनन्तर / से दंडे-वह दण्डनायक। विणएणं-विनयपूर्वक। तह त्ति-तथाऽस्तु-ऐसे ही होगा, कह कर। एयमटुं- इस आज्ञा को। पडिसुणेति-स्वीकार करता है। तते णं-तदनन्तर / से दण्डे-वह दण्डनायक। सन्नद्ध-दृढ़ बन्धनों से बन्धे हुए और लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच को धारण किए हुए। जाव-यावत्। पहरणेहि-आयुधों और प्रहरणों को धारण करने वाले। बहूहि-अनेक। पुरिसेहि-पुरुषों के। सद्धिं-साथ। संपरिवुडे-सम्परिवृत-घिरा हुआ। मगइएहिं-हाथ में बान्धी हुई। फलएहिं-फलकोंढालों से। जाव-यावत्। छिप्पतूरेणं वन्जमाणेणं-क्षिप्रतूर्य नामक वाद्य को बजाने से। महया-महान्, 1. "दंड" शब्द का अर्थ अभयदेवसूरि "दण्डनायक' करते हैं और पण्डित मुनि श्री घासीलाल जी म० "दण्ड नामक सेनापति" ऐसा करते हैं। कोषकार दण्डनायक शब्द के-ग्रामरक्षक, कोतवाल तथा दण्डदान, अपराध-विचार-कर्ता, सेनापति और प्रतिनियत सैन्य का नायक ऐसे अनेकों अर्थ करते हैं। 394 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय - [प्रथम श्रुतस्कंध