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________________ "-विशिष्ट ज्ञान वाले व्यक्ति का नाम विज्ञात है तथा अवस्थाविशेष-प्राप्त व्यक्ति को परिणतमात्र कहते हैं-" यह अर्थ होगा। प्रस्तुत प्रकरण में अवस्था-विशेष शब्द से बाल्यावस्था के अतिक्रमण के अनन्तर की अवस्था विवक्षित है। तात्पर्य यह है कि यौवनावस्था से पूर्व की और बाल्यावस्था के अन्त की अर्थात् दोनों के मध्य की अवस्था वाले व्यक्ति का नाम परिणतमात्र होता है। __ तथा "-विज्ञातं-अवबुद्धं परिणतमात्रम्-अवस्थानन्तरं येन स तथा, बाल्यावस्थामतिक्रम्य परिज्ञातयौवनारम्भ इत्यर्थ:-" ऐसी व्याख्या करने से तो विज्ञातपरिणतमात्र पद का “-कौमारावस्था व्यतीत हो जाने पर यौवनावस्था के प्रारम्भ को जानने वाला-" यह अर्थ निष्पन्न होगा। तथा-"-विण्णयपरिणयमित्ते-ऐसा पाठ मानने पर और इस की - विज्ञ एव विज्ञकः, स चासौ परिणतमात्रश्च बुद्धयादिपरिणामापन्न एव विज्ञकपरिणतमात्रः- ऐसी श्री अभयदेव सूरि कृत व्याख्या मान लेने पर अर्थ होगा-जो विज्ञ है अर्थात् विशेष ज्ञान रखने वाला है और जो बुद्धि आदि की परिणति को उपलब्ध कर रहा है। तात्पर्य यह है कि बाल्यकाल की बुद्धि आदि का परित्याग कर यौवन कालीन बुद्धि आदि को जो प्राप्त हो रहा :: अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में प्रस्तुत अध्ययन के प्रधान नायक की अग्रिम जीवनी का वर्णन करते हुए इस प्रकार कहते हैं मूल-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं पुरिमताले नगरे समोसढे, परिसा निग्गया, राया निग्गओ, धम्मो कहिओ, परिसा राया य पडिगओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी गोयमे जाव रायमग्गं समोगाढे तत्थ णं बहवे हत्थी पासति, बहवे आसे, पुरिसे सन्नद्धबद्धकवए, तेसिं णं पुरिसाणं मज्झगतं एगं पुरिसं पासति अवओडय० जाव उग्धोसेजमाणं।तते णं तं पुरिसं रायपुरिसा पढमंसि चच्चरंसि निसियाति 2, अट्ठ चुल्लपिउए अग्गओ घाएंति 2 त्ता कसप्पहारेहिं तालेमाणा 2 कलुणं कागिणीमंसाइं खावेंति खावित्ता रुहिरपाणंच पाएंति। तदाणंतरं च णं दोच्चंसि चच्चरंसि अट्ठचुल्लमाउयाओ अग्गओ घाएंति 2 एवं तच्चे चच्चरे अट्ठ महापिउए, चउत्थे अट्ठ महामाउयाओ, पंचमे पुत्ते, छठे सुण्हाओ, सत्तमें जामाउया, अट्ठमे धूयाओ, नवमे णत्तुया, दसमे णत्तुईओ, एक्कारसमे णत्तुयावई, बारसमे प्रथम श्रुप्तस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [347
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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