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________________ उसने अङ्गोपाङ्गों से रहित व्यक्तियों तथा बहिष्कृत दीन-जनों की भरसक सहायता की, इस के अतिरिक्त स्वकार्य-सिद्धि के लिए उस ने चोरों, गांठकतरों, परस्त्री-लम्पटों और जुआरी तथा धूर्तों को आश्रय देने का यत्न किया। इस से उस का प्रभाव इतना बढ़ा कि वह प्रान्त की जनता से राजदेय-कर को भी स्वयं ग्रहण करने लगा तथा प्रजा को पीड़ित, तर्जित और संत्रस्त करके उस पर अपनी धाक जमाने में सफल हुआ। __ विचार करने से ज्ञात होता है कि वह सामयिक नीति का पूर्ण जानकार था, संसार में लुटेरे और डाकू किस प्रकार अपने प्रभाव तथा आधिपत्य को स्थिर रख सकते हैं, इस विषय में वह विशेष निपुण था। "-पारदारियाण-पारदारिकाणां-" इत्यादि शब्दों की व्याख्या निम्नोक्त है "-पारदारियाण-परस्त्रीलम्पटानां-" अर्थात् जो व्यक्ति दूसरों की स्त्रियों से अपनी वासना को तृप्त करता है, या यूं कहें कि परस्त्रियों से मैथुन करने वाला व्यभिचारी पारदारिक कहलाता है। "-गंठिभेयगाण- ग्रन्थीनां भेदकाः-ग्रन्थिभेदकाः तेषां-" अर्थात् जो लोग कैंची आदि से लोगों की ग्रन्थियां-गांठे कतरते हैं, उन्हें ग्रन्थिभेदक कहा जाता है। टीकाकार श्री अभयदेव सूरि द्वारा की गई-घुघुरादिना ये ग्रन्थी: छिन्दन्ति ते ग्रन्थिभेदकाः, इस व्याख्या में प्रयुक्त घुघुर शब्द का कोषकार-सूअर की आवाज-ऐसा अर्थ करते हैं। इस से "-सूअर की आवाज जैसे शब्दों से लोगों को डरा कर उनकी गांठे कतरना-" यह अर्थ फलित होता है। "-सन्धिछेयाण- ये भित्तिसन्धीन् भिन्दन्ति ते सन्धिछेदका:-"अर्थात् सन्धि शब्द के अनेकानेक अर्थ होते हैं, परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में सन्धि का अर्थ है-दीवारों का जोड़। उस जोड़ का भेदन करने वाले-सन्धिछेदक कहलाते हैं। "खण्डपट्टाण-खण्ड: अपरिपूर्णः पट्टः परिधानपट्टो येषां मद्यद्यूतादिव्यसनाभिभूततया परिपूर्णपरिधानाप्राप्तेः ते खण्डपट्टाः-द्यूतकारादयः, अन्यायव्यवहारिणः इत्यन्ये, धूर्ता इत्यपरे" अर्थात् खण्ड का अर्थ है-अपरिपूर्ण-अपूर्ण (अधूरा)। पट्ट कहते हैं-पहनने के वस्त्र को। मदिरा-सेवन एवं जूआ आदि व्यसनों में आसक्त रहने के कारण जिन को वस्त्र भी पूरे उपलब्ध नहीं होते, उन्हें खण्डपट्ट कहते हैं / या यूं कहें कि खण्डपट्ट द्यूतकार-जुआरी या मदिरासेवीशराबी का नाम है। कोई-कोई आचार्य खण्डपट्ट शब्द की व्याख्या “अन्याय से व्यवहार-व्यापार करने वाले-" ऐसी करते हैं, और कोई-कोई खण्डपट्ट का अर्थ "धूर्त" भी करते हैं। चालबाज या धोखा देने वाले को धूर्त कहा जाता है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [343
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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