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________________ जाने से वहां जो भयंकर गढ़े हो जाते हैं, वे ही उस चोरपल्ली के चारों ओर खाई का काम दे रहे थे। ___ पहले जमाने में राजा लोग अपने किले आदि के चारों ओर खाई खुदवा दिया करते थे। खाई का उद्देश्य होता था कि जब शत्रु चारों ओर से आकर घेरा डाल दे तो उस समय उस खाई में पानी भर दिया जाए, जिस से शत्रु जल्दी-जल्दी किले आदि के अन्दर प्रवेश न कर सके। इसी भान्ति चोरपल्ली के चारों ओर भी विशाल तथा विस्तृत पर्वतीय गर्त बने हुए थे, जो परिखा के रूप में होते हुए उसे (चोरपल्ली को) भावी संकटों से सुरक्षित रख रहे थे। "-अणेगखंडी-अनेका नश्यतां नाराणां मार्गभूताः खण्डयोऽपद्वाराणि यस्यां साऽनेकखण्डी-" अर्थात् उस चोरपल्ली में चोरों के भागने के लिए बहुत से गुप्तद्वार थे। गुप्तद्वार का अभिप्राय चोर-दरवाजों से है। चोरपल्ली में गुप्तद्वारों के निर्माण का अर्थ था कियदि चोरपल्ली किसी समय प्रबल शत्रुओं से आक्रान्त हो जाए तब शत्रुओं की शक्ति अधिक और अपनी शक्ति कम होने के कारण वहां से सुगमता-पूर्वक भाग कर अपना जीवन बचा लिया जाए। ___"-विदित-जण-दिण्ण-निग्गम-प्पवेसा-विदितानामेव प्रत्यभिज्ञातानां जनानां दत्तो निर्गमः प्रवेशश्च यस्यां सा तथा-" अर्थात् उस चोरपल्ली के अधिकारियों की ओर से वहां के प्रतिहारियों को यह कड़ी आज्ञा दे रखी थी कि चोरपल्ली में परिचित-विश्वासपात्र व्यक्ति ही प्रवेश कर सकते हैं, और परिचित ही वहां से निकल सकते हैं। अधिकारियों की ऐसी आज्ञा का अभिप्राय इतना ही है कि कोई राजकीय गुप्तचर चोरपल्ली में प्रवेश न कर पाए और वहां से कोई बन्दी भी भाग न जाए। इन विशेषणों द्वारा वहां के अधिकारियों की योग्यता, दीर्घदर्शिता, रक्षासाधनों की ओर सतर्कता एवं अनुशासन के प्रति दृढ़ता का पूरा-पूरा परिचय मिल जाता है। - "-कूवियस्स जणस्स दुप्पहंसा-" यहां पठित "कूवियस्स" के स्थान पर "कुवियस्स-" ऐसा पाठान्तर भी मिलता है। प्रथम "कूविय" पद को कोषकार देश्य पद (देश विशेष में प्रयुक्त होने वाला) बताते हैं और इसका-मोषव्यावर्तक अर्थात् चुराई हुई चीज की खोज लगा कर उसे लाने वाला-ऐसा अर्थ करते हैं। तथा दूसरा "कुविय" यह पद यौगिक है, जिस का अर्थ होता है-कुपित अर्थात् क्रोध से पूर्ण / तात्पर्य यह है कि उस चोरपल्ली में शस्त्र-अस्त्रादि का और सैनिकों का ऐसा व्यापकबल एकत्रित किया गया था कि वह चोरपल्ली मोषव्यावर्तकों से या क्रोधित शत्रुओं से भी प्रध्वस्या नहीं थी। दूसरे शब्दों में कहें तो-इन से भी उस चोरपल्ली का ध्वंस-नाश नहीं किया जा सकता था-यह कहा जा प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [337
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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