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________________ सारांश यह है कि पतित-पावन भगवान् महावीर स्वामी ने "-दुःखजनिका हिंसा से बचो और भगवती अहिंसा-दया का पालन करो, व्यभिचार के दूषण से अलग रहो और सदाचार के भूषण से अपने को अलंकृत करो। एवं ज्ञान-पूर्वक क्रियानुष्ठान का आचरण करते हुए अपने भविष्य को उज्ज्वल, समुज्ज्वल एवं अत्युज्वल बनाने का श्रेय प्राप्त करो -" यह उपदेश कथाओं के द्वारा संसार-वर्ती भव्य जीवों को दिया है, अतः शास्त्र-स्वाध्याय से प्राप्त शिक्षाएं जीवन में उतार कर आत्मा का श्रेय साधन करना ही मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। यह सब कुछ गुरु मुख द्वारा शास्त्र के श्रवण और मनन से ही हो सकता है। इसीलिए शास्त्रकारों ने बार-बार शास्त्र के श्रवण करने पर जोर दिया है। // द्वितीय अध्याय समाप्त॥ 330 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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