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________________ प्रतिपादन किया गया है यावत् कर्मों का अन्त करेगा, निक्षेप की कल्पना कर लेनी चाहिए। // द्वितीय अध्याय समाप्त॥ टीका-प्रस्तुत सूत्र में श्री गौतम स्वामी ने पतित-पावन वीर प्रभु से विनय-पूर्वक प्रार्थना की कि भगवन् ! जिस पुरुष के पूर्व-भव का वृत्तान्त अभी अभी-आप श्री ने सुनाने की कृपा की है, वह पुरुष यहां से काल कर के कहां जाएगा और कहां उत्पन्न होगा, यह भी बताने की कृपा करें। ___इस प्रश्न में गौतम स्वामी ने उज्झितक कुमार के आगामी भवों के विषय में जो जिज्ञासा की है, उस का अभिप्राय जीवात्मा की उच्चावच भवपरम्परा से परिचित होने के साथसाथ जीवात्मा के शुभाशुभ कर्मों का चक्र कितना विकट और विलक्षण होता है, तथा संसारप्रवाह में पड़े हुए व्यक्ति को जिस समय किसी महापुरुष के सहवास से 'सम्यक्त्वरत्न की प्राप्ति हो जाती है, तब से वह विकास की ओर प्रस्थान करता हुआ अन्त में अपने ध्येय को किस तरह प्राप्त कर लेता है, इत्यादि बातों की अवगति भी भली भान्ति हो जाती है। इसी उद्देश्य से गौतम स्वामी ने वीर प्रभु से उज्झितक के आगामी भवों को जानने की इच्छा प्रकट की है। गौतम स्वामी के सारगर्भित प्रश्न के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जो कुछ फरमाया उस पर से हमारे ऊपर के कथन का भली-भान्ति समर्थन हो जाता है। अब आप प्रभु वीर द्वारा दिए गए उत्तर को सुनें। भगवान ने कहा ___गौतम ! जिस व्यक्ति के आगामी भव के विषय में तुम ने पूछा है उसकी पूर्ण आयु 25 वर्ष की है, दूसरे शब्दों में कहें तो इस उज्झितक कुमार ने पूर्वभव में आयुष्कर्म के दलिक इतने एकत्रित किए हैं जिन की आत्म-प्रदेशों से पृथंक होने की अवधि 25 वर्ष की है। अतः 25 वर्ष की आयु भोंग कर वह उज्झितक कुमार आज ही दिन के तीसरे भाग में शूली पर लटका दिया जाएगा। मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर मानव-शरीर को छोड़ कर उज्झितक कुमार का जीव रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में नारकी-रूप से उत्पन्न होगा। वहां की भवस्थिति को पूरी करके वह इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष के वैताढ्य पर्वत की तलहटी 1. अनादि-कालीन संसार-प्रवाह में तरह-तरह के दुःखों का अनुभव करते-करते योग्य आत्मा में कभी ऐसी परिणाम-शुद्धि हो जाती है जो उस के लिए अभी अपूर्व ही होती है, उस परिणाम शुद्धि को अपूर्वकरण कहते हैं। उस से राग-द्वेष की वह तीव्रता मिट जाती है, जो तात्त्विक पक्षपात (सत्य में आग्रह) की बाधक है। ऐसी राग और द्वेष की तीव्रता मिटते ही आत्मा सत्य के लिए जागरुक बन जाता है। यह आध्यात्मिक जागरण ही सम्यक्त्व है। (पण्डित सुखलाल जी) प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [321
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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