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________________ से जकड़ा हुआ, और अध्युपपन्न-भोगों में ही मन को लगाए रखने वाला, होकर उत्पन्न हुए वानर-शिशुओं का अवहनन किया करेगा। ऐसे कर्म में तल्लीन हुआ वह कालमास में काल करके इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष के इन्द्रपुर नामक नगर में गणिका-कुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा।माता-पिता उत्पन्न हुए उस बालक का वर्द्धितकनपुंसक करके नपुंसक कर्म सिखलावेंगे। बारह दिन के व्यतीत हो जाने पर उस के माता-पिता उस का "प्रियसेन" यह नामकरण करेंगे। बालकभाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त तथा विज्ञ-विशेष ज्ञान रखने वाला एवं बुद्धि आदि की परिपक्व अवस्था को उपलब्ध करने वाला वह प्रियसेन नपुंसक रूप, यौवन और लावण्य के द्वारा उत्कृष्ट-उत्तम और उत्कृष्ट शरीर वाला होगा। ___ तदनन्तर वह प्रियसेन नपुंसक इन्द्रपुर नगर के राजा ईश्वर यावत् अन्य मनुष्यों को अनेकविध विद्याप्रयोगों से, मंत्रों द्वारा मंत्रित चूर्ण-भस्म आदि के योग से हृदय को शून्य कर देने वाले, अदृश्य कर देने वाले, वश में कर देने वाले तथा पराधीन-परवश कर देने वाले प्रयोगों से वशीभूत कर के मनुष्य-सम्बन्धी उदार-प्रधान भोगों का उपभोग करता हुआ समय व्यतीत करेगा। वह प्रियसेन नपुंसक इन पापपूर्ण कामों को ही अपना कर्तव्य, प्रधान लक्ष्य, तथा विज्ञान एवं सर्वोत्तम आचरण बनाएगा। इन दुष्प्रवृत्तियों के द्वारा वह अत्यधिक पापकर्मों का उपार्जन करके 120 वर्ष की परमायु का उपभोग कर काल-मास में काल करके इस रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में नारकी रूप से उत्पन्न होगा। वहां से निकल कर सरीसृप-छाती के बल से चलने वाले सर्प आदि अथवा भुजा के बल से चलने वाले नकुल आदि प्राणियों की योनियों में जन्म लेगा। वहां से उस का संसारभ्रमण जिस प्रकार प्रथम अध्ययन-गत मृगापुत्र का वर्णन किया गया है उसी प्रकार होगा। यावत् पृथ्वी-काया में जन्म लेगा। वहां से निकल वह सीधा इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष की चम्पा नामक नगरी में महिष-रूप से उत्पन्न होगा। वहां पर वह किसी अन्य समय गौष्ठिकों-मित्रमंडली के द्वारा जीवन-रहित हो अर्थात् उन के द्वारा मारे जाने पर उसी चम्पा नगरी के श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। वहां पर बाल्यभाव को त्याग कर यौवन अवस्था को प्राप्त होता हुआ वह तथारूप-विशिष्ट संयमी स्थविरों के पास शङ्का, कांक्षा आदि दोषों से रहित बोधि-लाभ को प्राप्त कर अनगार-धर्म को ग्रहण करेगा। वहां से कालमास में काल कर के सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा। शेष जिस प्रकार प्रथम-अध्ययन में मृगापुत्र के सम्बन्ध में 320 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय * [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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