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________________ इसी लिए अन्त में भगवान कहते हैं कि गौतम ! इस प्रकार से यह उज्झितक कुमार अपने पूर्वोपार्जित पाप-कर्मों के फल का उपभोग कर रहा है। इस कथा-सन्दर्भ से यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित हो जाता है कि मूक प्राणियों के जीवन को लूट लेना, उन्हें मार कर अपना भोज्य बना लेना, मदिरा आदि पदार्थों का सेवन करना एवं वासनापोषक प्रवृत्तियों में अपने अनमोल जीवन को गंवा देना इत्यादि बुरे कर्मों का फल हमेशा बुरा ही होता है। "-एएणं विहाणेणं वझं आणवेति-" यहां दिए गए "एतद्" शब्द से सूत्रकार ने पूर्व-वृत्तान्त का स्मरण कराया है। अर्थात् उज्झितक कुमार को अवकोटकबन्धन से जकड़ कर उस विधान-विधि से मारने की आज्ञा प्रदान की है जिसे भिक्षा के निमित्त गए गौतम स्वामी जी ने राजमार्ग में अपनी आंखों से देखा था। ... "एतद्"- शब्द का प्रयोग समीपवर्ती पदार्थ में हुआ करता है, जैसे किइदमस्तु संनिकृष्टे, समीपतरवर्तिनि चैतदोरूपम्। अदसस्तु विप्रकृष्टे, तदिति परोक्षे विजानीयात्॥१॥ अर्थात्-इदम् शब्द का प्रयोग सन्निकृष्ट-प्रत्यक्ष पदार्थ में, एतद् का समीपतरवर्ती पदार्थ में, अदस् शब्द का दूर के पदार्थ में और तद् शब्द का परोक्ष पदार्थ के लिए प्रयोग होता केवलज्ञान तथा केवलदर्शन के धारक भगवान की ज्ञान-ज्योति में उज्झितक कुमार का समस्त वर्णन समीपतर होने से यहां एतत् शब्द का प्रयोग उचित ही है। अथवा जिसे गौतम स्वामी जी ने समीपतर भूतकाल में देखा था, इसलिए यहां एतद् शब्द का प्रयोग औचित्य रहित नहीं है। .. ' अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में उज्झितक कुमार के आगामी भवसम्बन्धी जीवनवृत्तान्त का वर्णन करते हुए कहते हैं मूल-उज्झियए णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति ? गोतमा ! उज्झियए दारए पणवीसं वासाइं परमाउं पालइत्ता अजेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिन्ने कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववजिहिति। से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे. वेयड्ढगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववजिहिति। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [315
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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