SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमस्कार करने के अनन्तर। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। भंते !-हे भगवन् ! अहं-मैं। तुब्भेहिं अब्भणुण्णाते समाणे-आप श्री से आज्ञा प्राप्त कर।वाणियग्गामे-वाणिजग्राम नगर में गया। तहेव-तथैव। जाव-यावत्, एक पुरुष को देखा जो कि नरक सदृश वेदना को। वेएतिअनुभव कर रहा है। भंते !-हे भगवन् ! से णं-वह। पुरिसे-पुरुष। पुव्वभवे-पूर्वभव में। के आसिकौन था ? जाव-यावत्। पच्चणुभवमाणे-वेदना का अनुभव करता हुआ। विहरति-समय बिता रहा है? मूलार्थ-तदनन्तर उस पुरुष को देख कर भगवान् गौतम को यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि अहो ! यह पुरुष कैसी नरक तुल्य वेदना का अनुभव कर रहा है। तत्पश्चात् वाणिजग्राम नगर में उच्च, नीच, मध्यम अर्थात् धनिक, निर्धन और मध्य कोटि के घरों में भ्रमण करते हुए आवश्यकतानुसार भिक्षा लेकर वाणिजग्राम नगर के मध्य में से होते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आए और उन्हें लाई हुई भिक्षा दिखाई। तदनन्तर भगवान् को वन्दना नमस्कार करके उन से इस प्रकार कहने लगे हे भगवन् ! आप की आज्ञा से मैं भिक्षा के निमित्त वाणिज-ग्राम नगर में गया और वहाँ मैंने नरक सदृश वेदना का अनुभव करते हुए एक पुरुष को देखा।भदन्त ! वह पुरुष पूर्व भव में कौन था ? जो यावत् नरक तुल्य वेदना का अनुभव करता हुआ समय बिता रहा है ? टीका-भगवान् से आज्ञा प्राप्त कर भिक्षा के निमित्त भ्रमण करते हुए गौतम स्वामी ने वहां के राजमार्ग में जो कुछ देखा और देखने के बाद उस पुरुष की पापकर्मजन्य हीनदशा पर विचार करते हुए वे वापिस भगवान् की सेवा में उपस्थित हुए और लाई हुई भिक्षा दिखाकर उन की वन्दना नमस्कार करके वहां का अथ से इति पर्यन्त सम्पूर्ण वृत्तान्त भगवान् से कह सुनाया। सुनाने के बाद उस पुरुष के पूर्व-भव-सम्बन्धी वृत्तान्त को जानने की इच्छा से भगवान् से गौतम स्वामी ने पूछा कि भदन्त ! यह पुरुष पूर्वभव में कौन था ? कहां रहता था ? और उस का क्या नाम और गोत्र था ? एवं किस पापमय कर्म के प्रभाव से वह इस हीन दशा का अनुभव कर रहा है? "अज्झस्थिते 5" यहां दिए हुए 5 के अंक से-"कप्पिए, चिंतिए, पत्थिए, मणोगए, संकप्पे"- इस समग्र पाठ का ग्रहण करना सूत्रकार को अभीष्ट है। आध्यात्मिक का अर्थ आत्मगत होता है। कल्पित शब्द हृदय में उठने वाली अनेकविध कल्पनाओं का वाचक है। चिन्तित शब्द से-बार-बार किए गए विचार, यह अर्थ अभिमत है। प्रार्थित पद का अर्थ हैइस दशा का मूल कारण क्या है इस जिज्ञासा का पुनः-पुनः होना। मनोगत शब्द-जो विचार अभी बाहर प्रकट नहीं किया गया, केवल मन में ही है-इस अर्थ का परिचायक है। संकल्प प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [259
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy