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________________ प्रश्नीय सूत्र में श्री मलयगिरि जी ने इस प्रकार की है ___ "कवचं-तनुत्राणं, वर्म लोहमय-कसूलकादिरूपं संजातमस्येति वर्मितं, सन्नद्धं शरीरारोपणात् बद्धं गाढ़तरबन्धनेन बन्धनात्, वर्मितं कवचं येन स सन्नद्ध-बद्ध वर्मितकवचः" अर्थात् प्रस्तुत पदसमूह में चार पद हैं। इन में कवच (लोहे की कड़ियों के जाल का बना हुआ पहनावा जिसे योद्धा लड़ाई के समय पहनते हैं, जिरह बख्तर) विशेष्य है और १-सन्नद्ध, 2 -बद्ध तथा ३-वर्मित ये तीनों पद विशेषण हैं / सन्नद्ध का अर्थ है-शरीर पर धारण किया हुआ। बद्ध शब्द से, दृढ़तर बन्धन से बान्धा हुआ-यह अर्थ विवक्षित है और वर्मित पद लोहमय कसूलकादि से युक्त का बोधक है। सारांश यह है कि उन मनुष्यों ने कवचों को शरीर पर धारण किया हुआ है जो कि मजबूत बन्धनों से बान्धे हुए हैं, एवं जो लोहमय कसूलकादि से युक्त हैं। "-उप्पीलियसरासणपट्टिए- उत्पीड़ित-शरासन-पट्टि कान्, उत्पीड़िता कृतप्रत्यञ्चारोपणा शरासनपट्टिका-धनुर्यष्टिर्बाहुपट्टिका वा यैस्ते तथा तान्-" अर्थात् उन पुरुषों ने धनुष की यष्टियों पर डोरियां लगा रखीं हैं, अथ च शरासनपट्टिका-धनुष बैंचने के समय भुजा की रक्षा के लिए बान्धी जाने वाली चमड़े की पट्टी को उन पुरुषों ने बान्ध रखा शरासनपट्टिका पद की "-शरा अस्यन्ते क्षिप्यन्तेऽस्मिन्निति शरासनम्, इषुधिस्तस्य पट्टिका शरासनपट्टिका-" यह व्याख्या करने पर इस का तूणीर (तरकश) यह अर्थ होगा, अर्थात् उन पुरुषों ने तूणीर को धारण किया हुआ है। ___"-पिणद्धगेविजे-'" पिनद्धग्रैवेयकान्, पिनद्धं परिहितं ग्रैवेयकं यैस्ते तथा तान्-" अर्थात् उन पुरुषों ने ग्रैवेयक-कण्ठाभूषण धारण किए हुए हैं। "-विमलवरबद्धचिंधपट्टे-" विमलवरबद्धचिन्हपट्टान्, विमलो वरो बद्धश्चिन्हपट्टोनेत्रादिमयो यैस्ते तथा तान्-" अर्थात्-उन पुरुषों ने निर्मल और उत्तम चिन्ह-पट्ट बान्धे हुए हैं। सैनिकों की पहचान तथा अधिकारविशेष की सूचना देने वाले कपड़े के बिल्ले चिन्हपट कहलाते हैं। शस्त्र-अस्त्र आदि से सुसज्जित उन पुरुषों के मध्य में भगवान् गौतम स्वामी ने एक पुरुष को देखा। उस पुरुष का परिचय कराने के लिए सूत्रकार ने उस के लिए जो विशेषण दिए हैं, उनकी व्याख्या निम्न प्रकार से है "-अवओडगबन्धणं- अवकोटकबन्धनं, रज्ज्वा गलं हस्तद्वयं च मोटयित्वा पृष्ठभागे हस्तद्वयस्य बन्धनं यस्य स तथा तम्-" अर्थात् गले और दोनों हाथों को मोड़ कर पृष्ठभाग 254 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय ...[ प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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