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________________ किसी उत्सव विशेष के अवसर पर अथवा युद्ध के समय हस्तियों, घोड़ों और सैनिकों को शृंगारित, सुसज्जित एवं शस्त्र, अस्त्रादि से विभूषित किया जाता है उसी प्रकार वे हस्ती, घोड़े और सैनिक हर प्रकार की उपयुक्त वेषभूषा से सुसज्जित थे। उन के मध्य में एक अपराधी पुरुष उपस्थित था, जिसे वध्य भूमि की ओर ले जाया जा रहा था, और नगर के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध स्थानों पर उसके अपराध की सूचना दी जा रही थी। प्रस्तुत सूत्र में हस्तियों, घोड़ों और सैनिकों के स्वरूप का वर्णन करने के अतिरिक्त उज्झितक कुमार नाम के वध्य-व्यक्ति की तात्कालिक दशा का भी बड़ा कारुणिक चित्र बैंचा गया है। "-सन्नद्धबद्धवम्मियगुडिते-सन्नद्धबद्धवर्मिकगुडितान्"-इस पद की टीकाकार निम्न लिखित व्याख्या करते हैं- . "-सन्नद्धाः सन्नहत्या कृतसन्नाहा: 'तथा बद्धं वर्म-त्वक्त्राण-विशेषो येषां ते बद्धवर्माणस्ते एव बद्धवर्मिकाः तथा गुडा महांस्तनुत्राणविशेषः सा संजाता येषां ते गुडितास्ततः कर्मधारयोऽतस्तान्" अर्थात् सन्नद्ध-युद्ध के लिए उपस्थित होने जैसी सजावट किए हुए हैं अथवा युद्ध के लिए जो पूर्ण रूपेण तैयार हैं। बद्धवर्मिक-जिन पर वर्म-कवच बांधा गया है उन्हें वद्धवर्मा कहते हैं। स्वार्थ में क-प्रत्यय होने से उन्हीं को बद्धवर्मिक कहा जाता है। गुडा का अर्थ है-सरीर को सुरक्षित रखने वाला महान झूल / गुडा-झूल से युक्त को गुडित कहते हैं। सन्नद्ध, बद्धवर्मिक, और गुडित इन तीनों पदों का कर्मधारय समास है। "-उप्पीलियकच्छे-उत्पीडितकक्षान् उत्पीडिता गाढतरबद्धा कक्षा उरोबन्धनं येषां ते तथा तान्' अर्थात् हाथी की छाती में बांधने की रस्सी को कक्षा कहते हैं। उन हस्तिओं का कक्षा के द्वारा उदर-बन्धन बड़ी दृढ़ता के साथ किया हुआ है ताकि शिथिलता न होने पाए। "-उद्दामियघंटे- उद्दामित-घण्टान्, उद्दामिता अपनीतबन्धना प्रलम्बिता घण्टा येषां ते तथा तान्-" अर्थात् उद्दामित का अर्थ है बन्धन से रहित लटकना, तात्पर्य यह है कि झूल के दोनों ओर घण्टे लटक रहे हैं। - "-णाणा-मणि-रयण-विविह-गेविज-उत्तरकंचुइज्जे-नाना-मणिरत्न विविध ग्रैवेयक उत्तर कञ्चुकितान् नानामणिरत्नानि विविधानि ग्रैवेयकानि ग्रीवाभरणानि उत्तरकंचुकाश्च तनुत्राणविशेषाः सन्ति येषां ते तथा तान्-" अर्थात् वे हाथी नाना प्रकार के मणि, रत्न विविध ... 1. "-सन्नाह-" पद के संस्कृत-शब्दार्थ कौस्तुभ में तीन अर्थ किए हैं, (1) कवच और अस्त्रशस्त्र से सुसज्जित होने की क्रिया को, अथवा (2) युद्ध करने जाते जैसी सजावट को भी सन्नाह कहते हैं (3) कवच का नाम भी सन्नाह है। (पृष्ठ 890) "-सन्नद्ध-" शब्द के भी अनेकों अर्थ लिखे हैं-युद्ध करने को लैस, तैयार, किसी भी वस्तु से पूर्णतया सम्पन्न होना आदि। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [251
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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