SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर आए आकर उस से इस प्रकार बोले कि हे भद्रे ! ये तुम्हारा प्रथम गर्भ है, यदि तुम इसको किसी एकान्त स्थान में अर्थात् कूड़े कचरे के ढेर पर फिंकवा दोगी तो तुम्हारी प्रजा-सन्तान स्थिर नहीं रहेंगी, अत: फैंकने की अपेक्षा तुम इस बालक को गुप्त भूमिगृह (भौंरा ) में रखकर गुप्त रूप से भक्तपानादि के द्वारा इस का पालन पोषण करो। ऐसा करने से तुम्हारी भावी प्रजा-आगामी सन्तति स्थिर-चिरस्थायी रहेगी।तत्पश्चात् मृगादेवी ने विजय नरेश के इस कथन को विनय पूर्वक स्वीकार किया, और वह उस बालक को गुप्त भूमिगृह में स्थापित कर गुप्त रूप से आहार-खान, पान आदि के द्वारा उस का संरक्षण करने लगी। भगवान् कहते हैं कि हे गौतम ! इस प्रकार मृगापुत्र स्वकृत पूर्व के पाप कर्मों का प्रत्यक्ष फल भोगता हुआ समय बिता रहा है। ____टीका-धायमाता के द्वारा सर्वांगविकल जन्मान्ध पुत्र का जन्म तथा उसे बाहर फिंकवा देने सम्बन्धी मृगादेवी का अनुरोध आदि सम्पूर्ण खेदजनक वृत्तान्त को सुनकर विजय नरेश किंकर्तव्य विमूढ़ से हो गए, हैरान से रह गए, उन का मन व्याकुल हो उठा। उन्होंने धायमाता को कुछ भी उत्तर न देते हुए उसी समय सीधा मृगादेवी की ओर प्रस्थान किया। मृगादेवी के पास आकर उसे आश्वासन देते हुए बोले कि प्रिये ! तुम्हारा यह प्रथम गर्भ है। मेरे विचार में इसे बाहर फैंकना तुम्हारे लिए हितकर न होगा। यदि तुम इसे बाहर फिंकवाने का साहस करोगी तो तुम्हारी भावी-प्रजा-आगामी सन्तति को हानि पहुंचेगी, वह चिरस्थायी नहीं होगी। अतः तुम इस बच्चे को किसी गुप्त भूमीगृह में रखकर गुप्तरूप से इसके पालन पोषण का यत्न करो ताकि इस पुण्यकर्म से तुम्हारी भावी प्रजा को चिरस्थायी होने का अवसर प्राप्त हो, मेरी दृष्टि में यह उपाय ही हितकर है। महाराज की इस सम्मति को आज्ञारूप समझकर महाराणी मृगादेवी ने बड़े नम्रभाव से स्वीकार किया और उनके कथनानुसार मृगापुत्र का यथाविधि पालन पोषण करने में प्रवृत्त हो गई। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम अनगार से कहा कि हे गौतम ! तुम्हारे पूर्वोक्त प्रश्न "- भगवन् ! यह मृगापुत्र पूर्वजन्म में कौन था ?-" इत्यादि का यह उत्तर है। इस से यह भली-भांति स्पष्ट हो जाता है कि पुराकृत पापकर्मों के कारण ही कटुफल का प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करता हुआ यह मृगापुत्र अपने जीवन को बिता रहा है। इस कथा सन्दर्भ में विजय नरेश की धार्मिकता और दयालुता की जितनी सराहना की जाए उतनी ही कम है। "जीवन देने से ही जीवन मिलता है" इस अभियुक्तोक्ति के अनुसार मृगापुत्र को जीवन दान देने का फल यह हुआ कि उसके बाद मृगादेवी ने अन्य चार पुत्रों को जन्म दिया और वे सर्वांगसम्पूर्ण रूपसौन्दर्य युक्त और विनीत एवं दीघार्यु हुए। 200] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy