________________ की उक्त आज्ञा का पालन किया जाए अथवा उस से इन्कार कर दिया जाए इसका यथोचित आदेश मांगा। इस सारे सन्दर्भ का तात्पर्य यह है कि राजा महाराजाओं के यहां जो धायमाताएं होती थीं वे कितनी व्यवहार कुशल और नीति-निपुण हुआ करती थीं तथा अपने उत्तरदायित्व कोअपनी जिम्मेदारी को किस हद तक समझा करती थीं यह महाराणी मृगादेवी की धायमाता के व्यवहार से अच्छी तरह व्यक्त हो जाता है। "जातिअंधं जाव आगितिमित्तं" यहां पठित "जाव-यावत्" पद से "जाइअंधे" से आगे "-जाइमूए-" इत्यादि सभी पदों के ग्रहण की ओर संकेत किया गया है। तथा "हुंड" शब्द का वृत्तिकार सम्मत अर्थ है जिस के अंग प्रत्यंग सुव्यवस्थित न हों अर्थात् जिस के शरीरगत अंगोपांग नितान्त विकृत - भद्दे हों उसे हुंड कहते हैं। 'हुंड' त्ति अव्यवस्थितांगावयवम्। तथा मूलगत "भीया" पद के आगे जो 4 का अंक दिया है उसका तात्पर्य -"भीया, तत्था, उव्विग्गा, संजायभया-भीता, त्रस्ता, उद्विग्ना, संजात-भया" इन चारों पदों की संकलना से है। वृत्तिकार अभयदेव सूरि के मत में ये चारों ही पद भय की प्रकर्षता के बोधक अथच समानार्थक हैं। 'भीया, तत्था, उव्विग्गा, संजायभया' भयप्रकर्षाभिधानायैकार्थाः शब्दाः। तथा "उक्कुरुडिया" यह देशीय प्राकृत का पद है, इस का अर्थ होता है अशुचिराशि, अर्थात् कूड़े कचरे का ढेर या कूड़ा करकट फैंकने का स्थान। धायमाता से प्राप्त हुए पुत्र-जन्म-सम्बन्धी सम्पूर्ण वृत्तान्त को सुनकर नरेश ने क्या किया अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं मूल-तते णं से विजए तीसे अम्म० अंतिते सोच्चा तहेव संभंते उट्ठाते उठेति उठेत्ता जेणेव मियादेवी तेणेव उवागच्छति 2 त्ता मियं देविं एवं वयासीदेवाणुः! तुझं पढम-गब्भे, तं जइ णं तुम एयं एगते उक्कुरुडियाए उज्झसि तो णं तुज्झ पया नो थिरा भविस्संति, तेणं तुमं एवं दारगं रहस्सियंसि भूमीघरंसि रहस्सितेणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी 2 विहराहि, तो णं तुज्झ पया थिरा भविस्संति। तते णं सा मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स तहत्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेति 2 त्ता तं दारगं रह भूमिघर भत्त पडिजागरमाणी विहरति। एवं खलु गोयमा! मियापुत्ते दारए 'पुरा पोराणाणं जाव पच्चणुभवमाणे विहरति। 1. "पुरा पोराणाणं" त्ति पुरा पूर्वकाले "कृतानाम्' इति गम्यम् अत एव "पुराणानां" चिरन्तनानाम्। 198] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय * [ प्रथम श्रुतस्कंध