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________________ विजयस्य क्षत्रियस्य पूर्वमिष्टा 6 ध्येया विश्वासिता अनुमताऽऽसम् / यत् प्रभृति च ममायं गर्भ: कुक्षौ गर्भतया उपपन्नः, तत्प्रभृति च विजयस्य क्षत्रियस्याहं अनिष्टा यावदमनोमा जाता चाप्यभवम्, नेच्छति विजयः क्षत्रियो मम नाम वा गोत्रं वा ग्रहीतुम्, किमंग पुनदर्शनं वा परिभोगं वा, तत् श्रेयः खलु ममैतं गर्भं बहुभिर्गर्भशाटनाभिश्च पातनाभिश्च गालनाभिश्च मारणाभिश्च शाटयितुं वा 4 एवं संप्रेक्षते संप्रेक्ष्य बहूनि क्षाराणि च कटुकानि च, तूवराणि च गर्भशाटनानि 4 खादन्ती च पिबन्ती च इच्छति तं गर्भं शाटयितुं वा 4 नो चैव स गर्भःशटति वा 4 / ततः सा मगादेवी यदा नो संशक्नोति तं गर्भं शाटयितुं वा 4 तदा श्रान्ता, तान्ता परितान्ता, अकामा अस्वयंवशा तं गर्भ दुःखदुःखेन परिवहति। पदार्थ-तते णं-तंदनन्तर / पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि-मध्य-रात्रि में। कुडुम्बजागरियाएकुटुम्ब की चिन्ता के कारण। जागरमाणीए-जागती हुई। तीसे-उस। मियाए देवीए-मृग एयारूवे-यह इस प्रकार का। अज्झत्थिते-विचार। समुप्पन्ने- उत्पन्न हुआ। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। अहं-मैं। पुव्विं-पहले। विजयस्स खत्तियस्स-विजय क्षत्रिय को। इट्ठा-इष्ट-प्रीतिकारक। धेजा-चिन्तनीय। वेसासिया-विश्वासपात्र तथा।अणुमया-अनुमत-सम्मत / आसि-थी, परन्तु।जप्पभितिं च णं-ज़ब से। मम-मेरे। कुच्छिंसि-उदर में। इमे-यह / गब्भे-गर्भ। गब्भत्ताए-गर्भरूप से। उववन्नेउत्पन्न हुआ है। तप्पभितिं च णं-तब से। विजयस्स खत्तियस्स-विजय क्षत्रिय को। अहं-मैं / अणिट्ठाअप्रिय। जाव-यावत् / अमणामा-मन से अग्राह्य। जाया यावि होत्था-हो गई हूं। विजए खत्तिए-विजय क्षत्रिय तो। मम-मेरे / नामं वा-नाम तथा। गोत्तं वा-गोत्र का भी। गिण्हित्तते-ग्रहण करना-स्मरण करना भी। नेच्छति-नहीं चाहते। किमंग पुण-तो फिर / ईसणं वा-दर्शन तथा। परिभोगंवा-परिभोग-भोगविलास की तो बात ही क्या है ? / तं-अतः। खलु-निश्चय ही। मम-मेरे लिए यही। सेयं-श्रेयस्कर हैकल्याणकारी है कि मैं। एयं गब्भं-इस गर्भ को। बहहिं-अनेकविध / गब्भसाडणाहिय-गर्भ शातनाओं अर्थात् गर्भ को खण्ड-खण्ड कर के गिराने रूप क्रियाओं द्वारा / पाडणाहि य-पातनाओं-अखण्डरूप से गिराने रूपी क्रियाओं से। गालणाहि-गालनाओं-द्रवीभूत करके गिराने रूपी क्रियाओं से तथा। मारणाहि य-मारणाओं-मारण रूप क्रियाओं द्वारा। साडेत्तए वा ४-शातना, पातना, गालना, और मारणा के लिए। संपेहेइ 2 त्ता-विचार करती है, विचार करके। गब्भसाडणाणि य-गर्भ के गिराने वाली। बहूणि-अनेक प्रकार की। खराणि-खर-खारी। कडुयाणि य-कटु, कड़वी। तूवराणि य-कषाय रस युक्त, कसैली औषधियों को। खायमाणी य-खाती हुई। पीयमाणी य-पीती हुई। तं गब्भं-उस गर्भ को। साडित्तए वा ४-शातन, पातन, गालन और मारण करने की। इच्छति-इच्छा करती है, परन्तु। से गब्भे-उस गर्भ का। नो चेवणं-नहीं। सडइ ४-शातन, पातन, गालन और मारण हुआ। तते णं-तदनन्तर / सा मियादेवी-वह मृगादेवी। जाहे-जब। तं गब्भं-उस गर्भ का। साडित्तए वा ४-शातनादि करने में। नो संचाएति-समर्थ प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [189
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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