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________________ मुख करके ) जब उस भूमिगृह के द्वार-दरवाजे को खोला तब उस में से दुर्गन्ध आने लगी, वह दुर्गन्ध मृत सर्प आदि प्राणियों की दुर्गन्ध के समान ही नहीं प्रत्युत उससे भी अधिक अनिष्ट थी। - टीका-मृगादेवी के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् गौतम स्वामी ने रहस्योद्घाटन के सम्बन्ध में जो कुछ कहा उसका विवरण इस प्रकार है गौतम स्वामी बोले-महाभागे! इसी नगर के अन्तर्गत चन्दन पादप नामा उद्यान में मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान हैं, वे सर्वज्ञ अथच सर्वदर्शी हैं, भूत, भविष्यत् और वर्तमान तीनों काल के वृत्तान्त को जानने वाले हैं। वहां उन की व्याख्यानपरिषद् में आए हुए एक अन्धे व्यक्ति को देखकर मैंने प्रभु से पूछा-भदन्त ! क्या कोई ऐसा पुरुष भी है जो कि जन्मान्ध होने के अतिरिक्त जन्मान्धकरूप (जिस के नेत्रों की उत्पत्ति भी नहीं हुई है) भी हो? तब भगवान् ने कहा, हां गौतम! है। कहां है भगवन् ! वह पुरुष ? मैंने फिर उनसे पूछा। मेरे इस कथन के उत्तर में भगवान् ने तुम्हारे पुत्र का नाम बताया और कहा कि इसी मृगाग्राम नगर के विजयनरेश का पुत्र तथा मृगादेवी का आत्मज मृगापुत्र नामक बालक है जो कि जन्मान्ध और जन्मान्धकरूप भी है इत्यादि / अतः तुम्हारे पुत्र-विषयक मैंने जो कुछ कहा है वह मुझे मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से प्राप्त हुआ है। भगवान् का यह कथन सर्वथा अभ्रांत एवं पूर्ण सत्य है, उसके विषय में मुझे अणुमात्र भी अविश्वास न होने पर भी केवल उत्सुकतावश मैं तुम्हारे उस पुत्र को देखने के लिए यहां पर आ गया हूं। आशा है मेरे इस कथन से तुम्हारे मन का भली-भांति समाधान हो गया होगा। यह था महारानी मृगादेवी के रहस्योद्घाटन सम्बन्धी प्रश्न का गौतम स्वामी की ओर से दिया गया सप्रेम उत्तर, जिसकी कि उसे अधिक आकांक्षा अथच जिज्ञासा थी। ... भगवान् गौतम स्वामी और महारानी का आपस में वार्तालाप हो ही रहा था कि इतने में मृगापुत्र के भोजन का समय भी हो गया। तब मृगादेवी ने भगवान् गौतम स्वामी से कहा कि भगवन् ! आप यहीं विराजें, मैं अभी आप को उसे (मृगापुत्र को) दिखाती हूं, इतना कहकर वह भोजन-शाला की ओर गई, वहां जाकर उसने पहले अपने वस्त्र बदले, फिर काष्ठशकटीलकड़ी की एक छोटी सी गाड़ी ली और उस में विपुल-अधिक प्रमाण में अशन (रोटी, दाल आदि) पान (पानी, खादिम, मिठाई तथा दाख, पिस्ता आदि) और स्वादिम (पान-सुपारी आदि) रूप चतुर्विध आहार को ला कर भरा, तदनन्तर उस आहार से परिपूर्ण शकटी को स्वयं बैंचती हुई वह गौतम स्वामी के पास आई और उन से नम्रता पूर्वक इस प्रकार बोली-भगवन् ! पधारिए, मेरे साथ आइए, मैं आप को उसे (मृगापुत्र को) दिखाती हूं। महारानी मृगादेवी की प्रथम श्रुतस्कंध ] . श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [145
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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