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________________ मियादेवी-वह मृगादेवी। तं कट्ठसगडियं-उस काष्ठ-शकटी को।अणुकड्ढमाणी-बैंचती हुई। जेणेव भूमिघरे-जहां पर भूमि-गृह था। तेणेव-वहीं पर। उवागच्छति २त्ता-आती है, आकर। चठप्पुडेणं वत्थेणं-चार पुट वाले वस्त्र से। मुहं बंधमाणी-मुख को बांधती हुई-अर्थात् नाक बांधती हुई। भगवंभगवान्। गोतमं-गौतम स्वामी को। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे। भंते ! हे भगवन् ! तुब्भे विय णं-आप भी। मुहपोत्तियाए-मुख के वस्त्र से। मुहं-मुख को अर्थात् नाक को। बंधह-बांध लें। तते णंतब। मियादेवीए-मृगादेवी के। एवं-इस प्रकार। वुत्ते समाणे-कहे जाने पर। भगवं गोतमे-भगवान् गौतम। मुहपोत्तियाए मुहं बन्धति-मुख के वस्त्र के द्वारा मुख को-नाक को बान्ध लेते हैं। तते णंतदनन्तर / सा मियादेवी-वह मृगादेवी। परंमुही-पराङ्मुख हुई 2 / भूमिघरस्स दुवारं-भूमीगृह के दरवाजे को। विहाडेति-खोलती है। ततो णं गंधो निग्गच्छति-उस से गन्ध निकलती है। से-वह-गन्ध। जहाजैसे। नामए-वाक्यालङ्कारार्थक है। अहिमडे इ वा जाव-यावत् मरे हुए सर्प की दुर्गन्ध होती है। ततो वि यणं-उससे भी। अणिट्ठतराए चेव-अधिक अनिष्ट (अवाञ्छनीय) / जाव-यावत् / गंधे पण्णत्ते-गन्ध थी। __ मूलार्थ-तब भगवान् गौतम स्वामी ने मृगादेवी को कहा-हे देवानुप्रिये ! अर्थात् हे भद्रे ! इस बालक का वृत्तान्त मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने मेरे को कहा था, इसलिए मैं जानता हूं। जिस समय मृगादेवी भगवान् गौतम के साथ संलापसंभाषण कर रही थी, उसी समय मृगापुत्र बालक के भोजन का समय हो गया था। तब मृगादेवी ने भगवान् गौतम स्वामी से निवेदन किया कि हे भगवन् ! आप यहीं ठहरें, मैं आप को मृगापुत्र बालक को दिखाती हूं।इतना कहकर वह जिस स्थान पर भोजनालय था वहां आती है, आकर प्रथम वस्त्र परिवर्तन करती है-वस्त्र बदलती है, वस्त्र बदल कर काष्ठशकटी-काठ की गाड़ी को ग्रहण करती है, तथा उस में अशन, पान, खादिम और स्वादिम को अधिक मात्रा में भरती है, तदनन्तर उस काष्ठशकटी को बैंचती हुई जहां भगवान् गौतम स्वामी थे वहां आती है, आकर उसने भगवान् गौतम स्वामी से कहा-भगवन् ! आप मेरे पीछे आएं मैं आप श्री को मृगापुत्र बालक को दिखाती हूं। तब भगवान् गौतम मृगादेवी के पीछे-पीछे चलने लगे। तदनन्तर वह मृगादेवी काष्ठ-शकटी को बैंचती हुई जहां पर भूमिगृह था वहां पर आई, आकर चतुष्पुट-चार पुट वाले वस्त्र से अपने मुख को-अर्थात् नाक को बान्धती हुई भगवान् गौतम स्वामी से बोलीभगवन्! आप भी मुख के वस्त्र से अपने मुख को बान्ध लें अर्थात् नाक को बान्ध लें। तदनन्तर भगवान् गौतम स्वामी ने मृगादेवी के इस प्रकार कहे जाने पर मुख के वस्त्र से अपने मुख-नाक को बान्ध लिया। तत्पश्चात् मृगादेवी ने परांमुख हो कर (पीछे को 1. “से जहा नामए" त्ति तद्यथा नामेति वाक्यालंकारे। (वृत्तिकारः) . 144 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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