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________________ स्वामी को देख कर अत्यधिक हर्षित हुई, तथा प्रसन्न चित्त से शीघ्र ही आसन पर से उठ कर सात-आठ कदम आगे गई, और उन को दाहिनी ओर से तीन बार प्रदक्षिणा दे कर वन्दना तथा नमस्कार करती है, वन्दना नमस्कार करने के अनन्तर विनयपूर्वक उन से पूछती है कि भगवन् ! फरमाइए आप ने किस निमित्त से यहां पर पधारने की कृपा की है ? महारानी मृगादेवी का गौतम स्वामी के प्रति आगमन-प्रयोजन-विषयक प्रश्न नितरां समुचित एवं बुद्धिगम्य है। कारण कि आगमन विषयक अवगति-ज्ञान होने के अनन्तर ही वह उन की इच्छित वस्तु देने में समर्थ हो सकेगी, तथा उपकरण आदि वस्तु का दान भी प्रयोजन के अन्तर्गत ही होता है, इस लिए महारानी मृगादेवी की पृच्छा को किसी प्रकार से अंसघटित नहीं माना जा सकता, प्रत्युत वह युक्तियुक्त एवं स्वाभाविक है। प्रयोजन-विषयक प्रश्न के उत्तर में गौतम स्वामी ने अपने आगमन का प्रयोजन बताते हुए कहा-देवी ! मैं तुम्हारे पुत्र को देखने के लिए यहां आया हूं। यह सुन मृगादेवी ने अपने चारों पुत्रों को जो कि मृगापुत्र के पश्चात् जन्मे हुए थे-वस्त्र भूषणादि से अलंकृत कर के गौतम : स्वामी की सेवा में उपस्थित करते हुए कहा कि भगवन् ! ये मेरे पुत्र हैं, इन्हें आप देख लीजिए। मृगादेवी के सुन्दर और समलंकृत उन चारों पुत्रों को अपने चरणों में झुके हुए देखकर गौतम स्वामी बोले-महाभागे ! मैं तुम्हारे इन पुत्रों को देखने की इच्छा से यहां नहीं आया, किन्तु . तुम्हारे मृगापुत्र नाम के ज्येष्ठ पुत्र-जो कि जन्मकाल से ही अन्धा तथा पंगुला है और जिस को तुमने एक गुप्त भूमिगृह में रक्खा हुआ है तथा जिस का गुप्तरूप से तुम पालन पोषण कर रही हो-को देखने के लिए मैं यहां आया हूं। गौतम स्वामी की इस अश्रुतपूर्व विस्मयजनक वाणी को सुनकर मृगादेवी एकदम अवाक् सी रह गई। उस ने आश्चर्यान्वित होकर गौतम स्वामी से कहा कि भगवन् ! इस गुप्त रहस्य का आप को कैसे पता चला ? वह ऐसा कौन सा अतिशय ज्ञानी या तपस्वी है जिस ने आप के सामने इस गुप्तरहस्य का उद्घाटन किया? इस वृत्तान्त को तो मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं जानता, परन्तु आपने उसे कैसे जाना ? मृगादेवी का गौतम स्वामी के कथन से विस्मित एवं आश्चर्यान्वित होना कोई अस्वाभाविक नहीं / यदि कोई व्यक्ति अपने किसी अन्तरंग वृत्तान्त को सर्वथा गुप्त रखना चाहता हो, और वह अधिक समय तक गुप्त भी रहा हो, एवं उसे सर्वथा गुप्त रखने का वह भरसक प्रयत्न भी कर रहा हो, ऐसी अवस्था में अकस्मात् ही कोई अपरिचित व्यक्ति उस रहस्यमयी गुप्त घटना को यथावत् रूपेण प्रकाश में ले आवे तो सुनने वाले को अवश्य ही आश्चर्य होगा। वह सहसा चौंक उठेगा, बस यही दशा उस समय मृगादेवी की हुई ! वह एकदम सम्भ्रान्त और चकित सी हो गई। इसी के फलस्वरूप उसने गौतम स्वामी के विषय में "भन्ते!" की जगह "गोयमा!" ऐसा सम्बोधन 140 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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