________________ णं-तदनन्तर। से-उस। भगवं गोतमे-भगवान् गौतम ने। समणं-श्रमण। भगवं-भगवान्। महावीरंमहावीर स्वामी को। वंदति-वन्दन किया। नमसति-नमस्कार किया। वंदित्ता नमंसित्ता-वन्दन तथा नमस्कार करके / एवं-इस प्रकार वे। वयासी-कहने लगे। भंते !- हे भगवन् ! अहं-मैं। तुब्भेहिं-आप श्री से। अब्भणुण्णाते समाणे-अभ्यनुज्ञात हो कर अर्थात् आप श्री से आज्ञा प्राप्त कर। मियापुत्तं-मृगापुत्र / दारयं-बालक को। पासित्तए-देखना। णं-वाक्यालंकारार्थक है। इच्छामि-चाहता हूं ? [भगवान् ने कहा] / देवाणुप्पिया !-हे देवानुप्रिय ! अर्थात् हे भद्र ! अहासुहं-जैसे तुम को सुख हो। तते णंतदनन्तर / से भगवं गोतमे-वह भगवान् गौतम, जो कि। समणेणं भगवया-श्रमण भगवान् के द्वारा। अब्भणुण्णाते समाणे-अभ्यनुज्ञात-आज्ञा प्राप्त कर चुके हैं, और / हट्ठतुढे-अति प्रसन्न हैं। समणस्सश्रमण। भगवओ-भगवान् के। अंतितातो-पास से। पडिनिक्खमइ-चल दिए। पडिनिक्खमित्ता-चल कर। अतुरियं जाव सोहेमाणे-अशीघ्रता से यावत् ईर्या-समिति पूर्वक गमन करते हुए। जेणेव-जहां। मियग्गामे णगरे-मृगाग्राम नगर था। तेणेव-उसी स्थान पर। उवागच्छति-आते हैं। उवागच्छित्ताआकर / मझमझेणं-नगर के मध्यमार्ग से। मियग्गामं णगरं-मृगाग्राम नगर में। अणुपविस्सइ-प्रवेश करते हैं। अणुप्पविस्सित्ता-प्रवेश करके। जेणेव-जहां पर। मियादेवीए-मृगादेवी का। गिहे-घर था। तेणेव- उसी स्थान पर। उवागच्छति-आते हैं। तते णं-तदनन्तर। सा मियादेवी-उस मृगादेवी ने। एजमाणं-आते हुए। भगवं गोतमं-भगवान् गौतम स्वामी को। पासति-देखा, और वह उन्हें / पासित्तादेख कर। हट्ट-प्रसन्न हुई। जाव-यावत्। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगी। देवाणुप्पिया !-हे देवानुप्रिय ! अर्थात् हे भगवन् ! किमागमणपओयणं ?-आप के पधारने का क्या प्रयोजन है ? संदिसंतु-वह बतलावें। तते णं-उस के अनन्तर। भगवं गोतमे-भगवान् गौतम। मियं देविं-मृगादेवी को। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे। देवाणुप्पिए!-हे देवानुप्रिये ! अर्थात् हे भद्रे ! अहं-मैं। तवतेरे। पुत्तं- पुत्र को। पासित्तुं-देखने के लिए। हव्वमागते-शीघ्र अर्थात् अन्य किसी स्थान पर न जाकर सीधा तुम्हारे घर आया हूं। तते णं-तदनन्तर। सा मियादेवी-वह मृगादेवी। मियापुत्तस्स दारगस्समृगापुत्र बालक के। अणुमग्गजायए-पश्चात् उत्पन्न हुए 2 / चत्तारि पुत्ते-चार पुत्रों को। सव्वालंकारविभूसिए-सर्व अलंकारों से विभूषित। करेति-करती है। करेत्ता-कर के।भगवतो-गोतमस्सभगवान् गौतम स्वामी के। पाएसु-चरणों में। पाडेति-डालती है। पाडेता-नमस्कार कराने के पश्चात्, वह। एवं वयासी-इस प्रकार बोली। भंते !-हे भगवन् ! एए णं-इन। मम पुत्ते-मेरे इन पुत्रों को। पासह-देख लें। तते णं-तदनन्तर। भगवं गोतमे-भगवान् गौतम ने। मियं देविं-मृगादेवी को। एवं वयासी-इस प्रकार कहा। देवाणुप्पिए !-हे देवानुप्रिये ! अहं-मैं। एए तव पुत्ते-तेरे इन पुत्रों को। पासित्तुं-देखने के लिए। नो हव्वमागए-शीघ्र नहीं आया हूं किन्तु। तत्थ णं-इन में। जे से तव जेटे पुत्ते-तुम्हारा वह ज्येष्ठ पुत्र जो कि। जातिअंधे-जन्म से अन्धा। जाव अंधारूवे-यावत् अंधकरूप है, और जो। मियापुत्ते दारए-मृगापुत्र के नाम का बालक है, तथा। जण्णं तुमं-जिंस को तू। रहस्सियंसि भूमिघरंसि-एकान्त के भूमिगृह (भौरे) में। रहस्सियएणं भत्तपाणेणं-गुप्तरूप से खान-पान आदि के द्वारा / पडिजागरमाणी विहरसि-पालन पोषण में सावधान रह रही है। तं णं-उस को। अहं-मैं। पासित्तुंदेखने के लिए। हव्वमागते-शीघ्र आया हूं। तते णं-तदनन्तर। सा मियादेवी-वह मृगादेवी। भगवं प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [135