________________ उस जन्मान्ध व्यक्ति के उक्त प्रश्न का उत्तर देते हुए उस के साथ वाले पुरुष ने कहा कि महानुभाव ! ये नागरकि लोगों के झुण्ड किसी इन्द्र या स्कन्दादि महोत्सव के कारण नहीं जा रहे किन्तु आज इस नगर के बाहर चन्दनपादप उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का पधारना हुआ है, ये लोग उन्हीं के दर्शनार्थ उद्यान की ओर जा रहे हैं। तब तो हम भी वहां चलेंगे, वहां चलकर हम भी भगवान् की पर्युपासना से अपने आत्मा को पुनीत बनाने का अलभ्य लाभ प्राप्त करेंगे, इस प्रकार उस जन्मान्ध व्यक्ति ने बड़ी उत्सुकता से अपनी हार्दिक लालसा को अभिव्यक्त किया। तदनन्तर वह अपने साथी पुरुष के साथ चन्दनपादप उद्यान में पहुंचा और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में उपस्थित हो कर उन्हें सविधि वन्दना नमस्कार करके उचित स्थान पर बैठ गया। किसी भी मानवी व्यक्ति के जीवन की कीमत उस के बाहर के आकार पर से नहीं आंकी जा सकती, जीवन का मूल्य तो मानव के हृदयगत विचारों पर निर्भर रहता है। जिन का साक्षात् सम्बन्ध आत्मा से है। एक परम दरिद्र और कुरूप व्यक्ति के आन्तरिक भाव कितने मलिन अथवा विशुद्ध हैं, इस का अनुमान उस की बाहरी दशा से करना कितनी भ्रान्ति है, यह उस जन्मान्ध व्यक्ति के जीवन वृत्तान्त से भली-भांति सुनिश्चित हो जाता है। जो कि सात्विक भाव से प्रेरित होता हुआ वीर प्रभु की सेवा में उपस्थित हो रहा है, और उन की मंगलमय वाणी का लाभ उठाने का प्रयत्न कर रहा है। तदनन्तर विजय नरेश और समस्त परिषद् के उचित स्थान पर बैठ जाने पर, धर्म प्रेमी प्रजा की मनोवृत्तिरूप कुमुदिनी के राकेश-चन्द्रमा, धर्मप्राण, जनता के हृदय-कमल के सूर्य, अपनी कैवल्य विभूति से जगत को आलोकित करने वाले श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अपनी दिव्य वाणी के द्वारा विश्वकल्याण की भावना से धर्म देशना देना आरम्भ किया। संसार के भव्यात्माओं को निष्काम बना देने वाली वीर प्रभु की धर्म देशना को सुन कर तथा उसे हृदय में धारण कर अत्यधिक प्रसन्न चित्त से भगवान् को विधिपूर्वक वन्दना नमस्कार करने के अनन्तर उपस्थित श्रोतृवर्ग अपने-अपने स्थान को लौट गया। तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रधान शिष्य गौतमस्वामी ने उस जन्मांध व्यक्ति को देखा और उन्होंने भगवान् से पूछा कि भगवन् ! कोई ऐसा व्यक्ति भी है जो कि २जन्मांध होने के अतिरिक्त जन्मांधरूप भी हो ? इस का उत्तर भगवान् ने दिया कि हां, गौतम ! ऐसा पुरुष है जो कि जन्मांध 1. भगवान् की उस धर्मदेशनारूप सुधा का पान करने की इच्छा रखने वालों को "औपपातिक सूत्र" के देशनाधिकार का अवलोकन तथा मनन करने का यत्न करना चाहिए। 2. जन्मांध का अर्थ है-जो जन्मकाल से अंधा हो, नेत्र ज्योतिहीन हो, और जिस के नेत्रों की उत्पत्ति ही नहीं हो पाई, उसे जन्मांध रूप कहते हैं। दोनों में अन्तर इतना होता है कि जन्मांध के नेत्रों का मात्र आकार होता प्रथम श्रुतस्कंध ] . श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [131