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________________ उत्थया उत्थाय ............ [भगवती सू० श० 1 उ० 1 सू० 8] . जैनाचार्य पूज्य श्री जवाहिर लाल जी म० ने भगवती सूत्र के प्रथम शतक पर बहुत सुन्दर व्याख्यान दिए हैं, जो 6 भागों में प्रकाशित हो चुके हैं। पूर्वोक्त पदों का वहां बड़ा सुन्दर विवेचन किया गया है। पाठकों के लाभार्थ हम वहां का प्रसंगानुसारी अंश उद्धृत करते हैं जायसड्ढे (जात श्रद्धः) / जात का अर्थ प्रवृत्त और उत्पन्न दोनों हो सकते हैं। यहां जात का अर्थ प्रवृत्त है। रहा श्रद्धा का अर्थ, विश्वास करना श्रद्धा कहलाता है, लेकिन यहां श्रद्धा का अर्थ इच्छा है। तात्पर्य यह हुआ कि जम्बू स्वामी की प्रवृत्ति इच्छा में हुई। किस प्रकार की इच्छा में प्रवृत्ति ? इस प्रश्न का समाधान यह है कि जिन तत्त्वों का वर्णन किया जाएगा, उन्हें जानने की इच्छा में जम्बू स्वामी की प्रवृत्ति हुई। इस प्रकार तत्त्व जानने की इच्छा में जिस की प्रवृत्ति हो उसे जातश्रद्ध कहते हैं। . जातसंशय अर्थात् संशय में प्रवृत्ति हुई। यहां इच्छा की प्रवृत्ति का कारण बताया गया है, जम्बूस्वामी की इच्छा में प्रवृत्ति होने का कारण उनका संशय है, क्योंकि संशय होने से जानने की इच्छा होती है। जो ज्ञान निश्चयात्मक न हो, जिस में परस्पर विरोधी अनेक पक्ष मालूम पड़ते हों वह संशय कहलाता है। जैसे-यह रस्सी है या सर्प इस प्रकार का संशय होने पर उसे निवारण करने के लिए यथार्थता जानने की इच्छा उत्पन्न होती है। जम्बूस्वामी को तत्त्वविषयक इच्छा उत्पन्न हुई क्योंकि उन्हें संशय हुआ था। संशय संशय में भी अन्तर होता है, एक संशय श्रद्धा का दूषण माना जाता है और दूसरा श्रद्धा का भूषण। इसी कारण से शास्त्रों में संशय के सम्बन्ध में दो प्रकार की बातें कही गईं हैं। एक जगह कहा है-"संशयात्मा विनश्यति।" शंका-शील पुरुष नाश को प्राप्त हो जाता है। (1) . भगवती सूत्र में तो श्री गौतम स्वामी का और भगवान् महावीर का नामोल्लेख किया हुआ है परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में श्री जम्बू स्वामी का और श्री सुधर्मा स्वामी का प्रसंग चल रहा है, इसलिये यहां श्री जम्बू स्वामी का और श्री सुधर्मा स्वामी का नामोल्लेख करना ही उचित प्रतीत होता है। / (2) भगवान महावीर का सिद्धांत है कि-"चलमाणे चलिए" अर्थात् जो चल रहा है वह चला। यहां-'चलता है' यह कथन वर्तमान का बोधक है और 'चला' यह अतीत काल का। तात्पर्य यह है कि-'चलता है' यह वर्तमान काल की बात है, और 'चला' यह अतीत काल की। यहां पर संशय पैदा होता है कि जो बात वर्तमान काल की है, वह भूतकाल की कैसे कह दी गई ? शास्त्रीय दृष्टि से इस विरोधी काल के कथन को एक ही काल में बताने से दोष आता है, तथापि वर्तमान में अतीत काल का प्रयोग किया गया है, यह क्यों ? यह था भगवान् गौतम के संशय का अभिप्राय, जो टीकाकार ने भगवती सूत्र में बड़ी सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है। परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में जम्बू स्वामी को जो संशय हुआ उससे उन को क्या अभिमत था? इसके उत्तर में टीकाकार मौन हैं। कल्पना-उद्यान में पर्यटन करने से जो कल्पना-पुष्प चुन पाया हूँ, उन्हें पाठकों के कर कमलों में अर्पित कर देता हूँ। कहाँ तक उनमें औचित्य है, यह पाठक स्वयं विचार करें। प्रथम श्रुतस्कंध ]. श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [107
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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