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________________ जाती आयंबिल तपस्या के रूप में पाई जाती है। यह ठीक है कि वर्तमान में उपलब्ध आगमों में किस सूत्राध्ययन में कितना आयंबिल आदि तप होना चाहिए, इस सम्बन्ध में कोई निर्देश . नहीं मिलता, तथापि उन में उपधान तप के वर्णन से पूर्वोक्त मान्यता की प्रामाणिकता निर्विवाद सिद्ध हो जाती है। आगमों के अध्ययन के समय आयंबिल तप की गुरुपरम्परा के अनुसार जो मान्यता आज उपलब्ध एवं प्रचलित है, उस की तालिका पाठकों की जानकारी के लिए नीचे दी जाती है. ११-अङ्गशास्त्र-१-आचाराङ्गसूत्र 40 आयंबिल। २-सूत्रकृताङ्गसूत्र 30 आयंबिल। ३-स्थानांगसूत्र 18 आयंबिल। ४-समवायांगसूत्र 3 आयंबिल।५-भगवतीसूत्र 186 आयंबिल। ६-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 33 आयंबिल। ७-उपासकदशाङ्ग 14 आयंबिल। ८-अन्तकृद्दशाङ्ग 12 आयंबिल / ९-अनुत्तरोपपातिकदशा 7 आयंबिल। १०-प्रश्नव्याकरण 5 आयंबिल / ११विपाक सूत्र 24 आयंबिल। १२-उपाङ्गशास्त्र-१-औपपातिक 3 आयंबिल। २-राजप्रश्नीय 3 आयंबिल। ३जीवाभिगम 3 आयंबिल। ४-प्रज्ञापना 3 आयंबिल। ५-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 30 आयंबिल। ६निरयावलिका 7 आयंबिल।७-कल्पावतंसिका 7 आयंबिल। ८-पुष्पिका 7 आयंबिल / ९पुष्पचूला 7 आयंबिल। १०-वृष्णिदशा 7 आयंबिल। ११-चन्द्रप्रज्ञप्ति 3 आयंबिल। १२सूर्यप्रज्ञप्ति 3 आयंबिलां . ४-मूलसूत्र-१-दशवैकालिक 15 आयंबिल / २-नन्दी 3 आयंबिल।३-उत्तराध्ययन 29 आयंबिल। ४-अनुयोगद्वार 29 आयंबिल। ४-छेदसूत्र-१-निशीथ 10 आयंबिल / २-बृहत्कल्प 20 आयंबिल।३-व्यवहार 20 आयंबिल। ४-दशाश्रुतस्कन्ध 20 आयंबिल। .11 अङ्ग, 12 उपाङ्ग, 4 मूल और 4 छेद ये 31 सूत्र होते हैं। आवश्यक 32 वां सूत्र है, उस के लिए 6 आयंबिल होते हैं। . प्रस्तुत में विपाक का प्रसंग चालू है। अतः विपाक के अध्ययन आदि करने वाले महानुभावों के लिए गुरुपरम्परा के अनुसार आज की उपलब्ध धारणा से 24 आयंबिलों का 1. आयंबिल शब्द के अनेकों संस्कृतरूपों में से आचाम्ल, यह भी एक रूप है। आचाम्ल में दिन में एक बार रुक्ष, नीरस एवं विकृतिरहित एक आहार ही ग्रहण किया जाता है। दूध, घी, दही, तेल, गुड़, शक्कर, मीठा और पक्वान्न आदि किसी भी प्रकार का स्वादु भोजन आचाम्लव्रत में ग्रहण नहीं किया जा सकता। इस में लवणरहित चावल, उड़दं अथवा सत्तू आदि में से किसी एक के द्वारा ही आचाम्ल किया जाता है। आजकल भूने हुए चने आदि एक नीरस अन्न को पानी में भिगो कर खाने का भी आचाम्ल प्रचलित है। इस तप में रसलोलुपता पर विजय प्राप्त करने का महान् आदर्श है। वास्तव में देखा जाए तो रसनेन्द्रिय का संयम एक बहुत बड़ा संयम है। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / उपसंहार [999
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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