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________________ पर्याप्त सामग्री है। सुपात्रदान यह दान के ऐहिक और पारलौकिक फल में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इस लिए सुखविपाक के दशों अध्ययनों में इस के महत्त्व को एक से अधिक बार प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया गया है। अंग ग्रंथों में विपाकश्रुत ग्यारहवां अंगसूत्र है। विपाकसूत्र दुःखविपाक और सुखविपाक इन दो विभागों में विभक्त है। दुःखविपाक में मृगापुत्र आदि दस अध्ययन वर्णित हैं और सुखविपाक में सुबाहुकुमार आदि दस अध्ययन। प्रस्तुत वरदत्त नामक अध्ययन सुखविपाक का दसवां अध्ययन है। इस में श्री वरदत्त कुमार का जीवनवृत्तान्त प्रस्तावित हुआ है, जिस का विवरण ऊपर दिया जा चुका है। इस अध्ययन की समाप्ति पर सुखविपाक समाप्त हो जाता ॥दशम अध्याय समाप्त॥ द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [995
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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