________________ ॥श्रीइन्दुदूतान्तर्गतार्थान्तरन्यासाः // 1 नापुण्यानां नयनविषयं यत्प्रियः स्मर्यमाणः // 10 // 2 स्वादीयः स्यात् कदशनमपि स्नेहधारोपसिक्तम् // 12 // 3 स्वस्थे चित्ते प्रणयमधुरा बुद्धयो ह्यद्भवन्ति // 17 / / 4 ...प्रायः प्रथितयशसः प्रार्थना भङ्गभीताः // 18 // 5 ...वस्तु-र्भवति महिमो-दारसत्त्वैस्तनूजः // 26 // 6 याश्चाभङ्गे भवति लघुता नैव सा कित्वमुष्य ||27|| 7 विश्वे दोषान् गणयति जनो को हि राज्ञो भगिन्याः // 30 // 8 ऽभीष्टं स्थानं व्रजति हि जनः प्राअलेनाध्वना द्राक् // 32 // 9 प्रोत्तुङ्गानां भवति महतैवापनेयो विरोधः // 35 / / 10 पश्चात्ताप-स्तुदति हृदयं दर्शनीये ह्यदृष्टे / / 39 // 11 नान्तःशल्यं स भवति सतां सार्थको यो विलम्बः // 40 // 12 गन्तुं त्यक्त्वाऽऽश्रितमणुमपि त्वादृशा नोत्सहन्ते // 50 // 13 नाहद्विम्बं सुविहितमुने-र्वासयोगं विनाय॑म् // 58 / / 14 ...स्त्रीणां परममुदितं यौवनं भर्तृसङ्गः // 6 // 15 नालस्यं स्या-दुपकृतिकृतां त्वादृशां ह्यत्तमानाम् // 66 // 16 कण्ठे प्राणा नहि विरहिणः कृच्छमीषत्सहन्ते // 6 // 17 उल्लासं हि प्रथयति चिरा-द्वन्धुवाहानुषङ्गः / / 72 / / 18 सर्व दृष्टं वदति हि जनो वर्णिकादर्शनेन // 76 // 19 संसारे य-जनितजनक-प्रेमबन्धो गरीयान् // 84|| 20 पित्रोः पश्यन् क इह सुरतं लजते नो जडोऽपि // 88 // 21 पूतः क्षौद्रे ह्युपशमविधौ मन्त्रसारष्टकारः // 98 // 22 सर्वाभीष्टं फलति न चिरा-दर्शनं हीदृशानाम् // 123 // 23 नेतारो हि ध्रुवमवसरे प्रेक्षिणि प्रीतचित्ताः // 125 / /