________________ न्यायरोंग्रहः स्त्रीखलना अलो बाधकाः स्त्रियाः स्खलनौ // 112 // यावत्सम्भवस्तावद्विधिः // 113 // सम्भवे व्यभिचारे च विशेषणमर्थवत् // 114 // सर्व वाक्यं सावधास्णम् // 115 // प्पराथे प्रयुज्यमानः शब्दो वतमन्तरेणापि वदर्थ गमयति॥११६॥ द्वौ नौ प्रकृतमर्थ गमयतः // 117 // चकारो यस्मात्परस्तत्सजातीयमेव समुच्चिनोति // 118 // चानुकुष्ट नानुवर्तते // 119 // चानुकृष्टेन न यथासङ्ख्यम् // 12 // व्याख्यातो विशेषार्थप्रतिपत्तिः // 121 / / न्यत्रान्यक्रियापदं न श्रयते तत्रास्तिर्भवन्तीपरः प्रयुज्यते // 122 // यदुपाधेविभाषा तदुपाधेः प्रतिषेधः // 123 // यस्य येनाभिसम्बन्धो दूरस्थस्यापि तेन सः // 124 // येन विना यन्न भवति तत्तस्यानिमित्तस्यापि निमित्तम् // 125 // नामग्रहणे प्रायेणोपसर्गस्य न ग्रहणम् // 126 // सामान्यातिदेशे विशेषस्य नातिदेशः // 127 // सर्वत्रापि विशेषेण सामान्य वाध्यते न तु सामान्येन विशेषः // 128 // 'डित्त्वेन कित्त्वं बाध्यते / / 129 // 'परादन्तरङ्गं बलीयः / / 130 // प्रत्ययलोपेऽपि प्रत्ययलक्षण कार्य विज्ञायते // 131 // विधिनियमयोविधिरेव ज्यायान् // 132 //