________________ 169 न्यायसंग्रहः अहणवता नाम्ना न तदन्तविधिः // 75 // अनिनस्मन्ग्रहणान्यर्थवताऽनर्थकेन च तदन्तविधि प्रयोजयन्ति / / 76 // गामादामहणेष्वविशेषः // 77 // श्रुतानुमितयोः श्रीतो विधिर्वलीयान् // 78 // अन्तरङ्मानपि विधीन् यवादेशो बाधते // 79 // -सकृद्गते स्पद्धे यद् बाधित तद्बाधितमेव // 8 // द्वित्वे सति पूर्वस्य विकारेषु बाधको न बाधकः // 81 // कृतेऽन्यस्मिन् धातुप्रत्ययकाये पश्चाद् वृद्धिस्तवाध्योऽट् च।।८२॥ 'पूर्व पूर्वोत्तरपदयोः कार्य कार्य पश्चात्सन्धिकार्यम् // 83 // -संज्ञा न संज्ञान्तरवाधिका // 84 // सापेक्षमसमर्थम् // 85 // प्रधानस्य तु सापेक्षत्वेऽपि समासः // 86 // तद्धितीयो भावप्रत्ययः सापेक्षादपि // 87 // . गतिकारकङ स्युक्तानां विभयन्तानामेव कृदन्तैविभक्त्युत्पत्तेः प्रागेव समासः // 88 // समासतद्धितानां वृत्तिविकल्पेन वृत्तिविषये च 'नित्यैवापवादवृत्तिः // 89 // आदशभ्यः सङ्ख्या सङ्खयेये वर्तते न सङ्ख्याने // 9 // एकशब्दस्यासङ्ख्यात्वं वचित् // 91 // णौ यत्कृतं कार्य तत्सर्व स्थानिवद्भवति // 92 / / छिर्बद्धं सुबद्धं भवति // 13 //