________________ 134 श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचित गृह्या शाखापुरेऽश्मन्तेऽन्तिका कीला स्ताहतौ / ' रज्जौ रश्मिर्यवादिर्दोषादौ मञ्जा सुरागृहे // 25 // अहंपूर्विकादिवर्षा, मघा अकृत्तिका बहौ / वा तु जलौकोऽप्सरसः, सिकतासुमनःसमाः // 26 // गायत्र्यादय इष्टका बृहतिका संवर्तिका सर्जिकादूषीके अपि पादुका झिरुकया पयंस्तिका मानिका / नीका कञ्चुलिकाऽलुका कलिकया राका पताकाऽन्धिका- . शूका पूपलिका त्रिका चविकयोल्का पञ्जिका पिण्डिका // 27 // ध्रुवका क्षिपका कनीनिका; शम्बूका शिविका गवेधुका . . कणिका केका विपादिका, मिहिका यूका मक्षिकाऽष्टका // 28 // कूर्चिका कूचिका टीका, कोशिका केणिकोमिका / जलौका प्राविका धूका, कालिका दीर्घिकोष्ट्रिका // 29 // शलाका वालुकेषीका, विहङ्गि केषिके उखा / परिखा विशिखा शाखा, शिखा भङ्गा सुरुङ्गया // 30 // जङ्घा चञ्चा कच्छा पिच्छा, पिञ्जा गुञ्जा खजा प्रजा / झञ्झा घंटा जटा घोण्टा, पोटा भिस्सटया छटा // 31 // विष्ठा मञ्जिप्ठया काष्ठा, पाठा शुण्डा गुडा जडा / बेडा वितण्डया दाढा, राढा रीढाऽवलीढया / / 32 // घृणोर्णा वर्वणा स्थूणा, दक्षिणा लिखिता लता / तृणता त्रिवृता त्रेता, गीता सीता सिता चिता // 33 / /