________________ लिङ्गानुशासनम् / 133 दुंदुभिर्वमतिवृष्णिपाण्यविज्ञातिरालिकलयोऽञ्जलिघृणिः / अमिवहिवकृमयोहीदीदिविप्रन्थिकुक्षितयोऽर्दनिर्ध्वनिः // 16 // गिरिशिश्रुजायुको हाहाहूहूश्च नमहूर्ग,त् / . पादश्मानावात्मा पाप्मस्थेमोष्मयक्ष्माणः // 17 // इति पुलिझाधिकारः // स्त्रीलिङ्ग योनिमम्रीसेनावल्लितडिन्निशाम् / / वीचितन्द्रावटुग्रीवाजिह्वाशस्त्रीदयादिशाम् // 18 // शिंशपाद्या नदीवीयाज्योत्स्नाचीरीतिथीधियाम् / अङ्गुलीकलशीकङगुहिङगुपुत्रीसुरानसाम् // 19 // रास्नाशिलावचालालाशिम्बाकृष्णोष्णिकाश्रियाम् / स्पृक्कापण्याऽतसीधाय्यासरघारोचनाभुवाम् // 20 // हरिद्रामांसिदूर्वाऽऽलूवलाकाकृष्णलागिराम् / . इत्तु प्राण्यावाचि स्यादीदूदेकस्वर कृतः // 21 // पात्रादिवर्जितादन्तोत्तरपदः समाहारे / द्विगुरन्नाबन्तान्तो बाऽन्यस्तु सो नपुंसकः // 22 // लिन्मिन्यनिण्यमिस्त्रयुक्ताः, क्वचित्तिगल्पह्रस्वकप / विंशत्याद्याशताबून्द्वे, सा चैक्ये द्वन्द्वमेययोः // 23 // सुग्गीतिलताभिदि ध्रुवा, विडनरि वारि घटीभवन्धयोः / शल्यध्वनिवाघभित्सु तु, वेडा दुन्दुभिरक्षविन्दुषु // 24 //